Wednesday, June 10, 2009
अब समय है एक नई शुरुआत का
मंगलवार को समाप्त हुए संसद के पांचदिवसीय संक्षिप्त सत्र में कोई बहुत महत्वपूर्ण घोषणा भले ही न हुई हो, पर यह आने वाले समय में संसद, विशेषकर लोकसभा के नए माहौल के बारे में काफी कुछ बता गया। जहां राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने अपने भाषण में नई सरकार की प्राथमिकताएं गिनाईं, वहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने धन्यवाद प्रस्ताव में अपनी सरकार की प्रतिबद्धताएं गिनाईं, जिनमें कुछ ऐसा नहीं था जो यूपीए की पिछली सरकार की प्राथमिकताओं से अलग हो। इस बार वाम दलों से समर्थन की मजबूरी में न होने का प्रभाव साफ दिखा, जब प्रधानमंत्री ने सरकार के आर्थिक एजेंडे पर विस्तार से बात की। अधोसंरचना व सरकारी खर्च में बढ़ोतरी के बावजूद उन्होंने आशा जताई है कि आर्थिक विकास दर 7 फीसदी से कम नहीं होगी। पाकिस्तान के साथ संबंधों पर दूसरी ओर से पहल की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि ताली दोनों हाथ से बजती है। इन सब अपेक्षित बयानों से अलग जो दिखा, वह था लोकसभा का बदला नजारा, जहां स्पीकर की कुर्सी पर पहली बार कोई महिला, और वह भी दलित, आसीन थी। सदन को चलाने के तरीके में दिखे परिवर्तन निश्चित ही आने वाले दिनों में सदन में होने वाली बहस और नोक-झोंक को भी प्रभावित करेंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। जहां एक ओर मुख्य विपक्षी दल भाजपा के सांसदों के संयत व्यवहार और वाम दलों की चुप्पी ने ये संकेत दिया कि ये दल अभी अपनी हार के सदमे से उबरे नहीं हैं, वहीं लालू यादव के हाव-भाव से साफ जाहिर हुआ कि वे अपनी मंत्री की कुर्सी छिन जाने से काफी विचलित हैं। सत्र के अंतिम दिन उन्होंने मनमोहन मंत्रिमंडल पर ऐतराज जताते हुए प्रधानमंत्री से कहा कि वे अपने ‘मान-सम्मान से समझौता नहीं करेंगे’ जबकि अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिससे उनके सम्मान को ठेस पहुंचती दिखी हो। लालू की हताशा समझी जा सकती है कि सदन भी वही है और प्रधानमंत्री भी वही, सत्तापक्ष को समर्थन भी वही, पर जो नहीं है, वह है उनकी मंत्री वाली कुर्सी।उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने सरकार के लिए १क्क् दिनों का रिपोर्ट कार्ड बनाने की घोषणा की थी, जिसके तहत सभी मंत्रियों ने भी अपने-अपने विभागों ने आगामी सौ दिनों में पूरे होने वाले कार्यो की अति-उत्साही घोषणा कर दी थी। प्रधानमंत्री ने इस रिपोर्ट कार्ड पर तो कुछ नहीं कहा, पर आशा है कि ३ जुलाई को पेश होने वाले बजट में इसका उल्लेख जरूर होगा।
अब समय है एक नई शुरुआत का
मंगलवार को समाप्त हुए संसद के पांचदिवसीय संक्षिप्त सत्र में कोई बहुत महत्वपूर्ण घोषणा भले ही न हुई हो, पर यह आने वाले समय में संसद, विशेषकर लोकसभा के नए माहौल के बारे में काफी कुछ बता गया। जहां राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने अपने भाषण में नई सरकार की प्राथमिकताएं गिनाईं, वहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने धन्यवाद प्रस्ताव में अपनी सरकार की प्रतिबद्धताएं गिनाईं, जिनमें कुछ ऐसा नहीं था जो यूपीए की पिछली सरकार की प्राथमिकताओं से अलग हो। इस बार वाम दलों से समर्थन की मजबूरी में न होने का प्रभाव साफ दिखा, जब प्रधानमंत्री ने सरकार के आर्थिक एजेंडे पर विस्तार से बात की। अधोसंरचना व सरकारी खर्च में बढ़ोतरी के बावजूद उन्होंने आशा जताई है कि आर्थिक विकास दर 7 फीसदी से कम नहीं होगी। पाकिस्तान के साथ संबंधों पर दूसरी ओर से पहल की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि ताली दोनों हाथ से बजती है। इन सब अपेक्षित बयानों से अलग जो दिखा, वह था लोकसभा का बदला नजारा, जहां स्पीकर की कुर्सी पर पहली बार कोई महिला, और वह भी दलित, आसीन थी। सदन को चलाने के तरीके में दिखे परिवर्तन निश्चित ही आने वाले दिनों में सदन में होने वाली बहस और नोक-झोंक को भी प्रभावित करेंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। जहां एक ओर मुख्य विपक्षी दल भाजपा के सांसदों के संयत व्यवहार और वाम दलों की चुप्पी ने ये संकेत दिया कि ये दल अभी अपनी हार के सदमे से उबरे नहीं हैं, वहीं लालू यादव के हाव-भाव से साफ जाहिर हुआ कि वे अपनी मंत्री की कुर्सी छिन जाने से काफी विचलित हैं। सत्र के अंतिम दिन उन्होंने मनमोहन मंत्रिमंडल पर ऐतराज जताते हुए प्रधानमंत्री से कहा कि वे अपने ‘मान-सम्मान से समझौता नहीं करेंगे’ जबकि अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिससे उनके सम्मान को ठेस पहुंचती दिखी हो। लालू की हताशा समझी जा सकती है कि सदन भी वही है और प्रधानमंत्री भी वही, सत्तापक्ष को समर्थन भी वही, पर जो नहीं है, वह है उनकी मंत्री वाली कुर्सी।उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने सरकार के लिए १क्क् दिनों का रिपोर्ट कार्ड बनाने की घोषणा की थी, जिसके तहत सभी मंत्रियों ने भी अपने-अपने विभागों ने आगामी सौ दिनों में पूरे होने वाले कार्यो की अति-उत्साही घोषणा कर दी थी। प्रधानमंत्री ने इस रिपोर्ट कार्ड पर तो कुछ नहीं कहा, पर आशा है कि ३ जुलाई को पेश होने वाले बजट में इसका उल्लेख जरूर होगा।
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