कृष्णा हमारे मंत्री हैं या चीन के प्रवक्ता: तरुण विजय
8 Sep 2009, 1139 hrs IST,नवभारतटाइम्स.कॉम अभिषेक मेहरोत्रा
नई दिल्ली ।। चीन की बढ़ती घुसपैठ पर विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा के बयान को आड़
े हाथों लेते हुए चीन ऐक्स्पर्ट माने जाने वाले तरुण विजय ने कहा कि लगता है कि कृष्णा हमारे मंत्री न होकर चीन के प्रवक्ता बन गए हैं। उन्होंने कहा कि इस समय डिफेन्सिव होने के बजाए, चीन के साथ कड़क लहजे में बात करने की जरुरत है, ताकि चीन इस तरह की हरकत करने से पहले सौ बार सोचे। तरुण विजय ने यूपीए सरकार पर सवाल दागते हुए कहा कि सरकार जवाब दे कि चीन की इस तरह की हिमाकत के हिम्मत कैसे हुई और अब सरकार चीन पर कैसे नकेल कसेगी। भारत-चीन विशिष्ट जनसमिति (विदेश मंत्रालय) के पूर्व सदस्य और भारत-चीन संबधों पर शियाचुंग यूनिवर्सिटी के फेलो रह चुके तरुण विजय ने नवभारतटाइम्स डॉट कॉम से बात करते हुए कहा कि जहां तक मैं समझता हूं चीन हमेशा से ही ऐसा करता आया है, जब भी भारत से कोई प्रतिनिधि चीन यात्रा पर होता है, तो चीन इस तरह की कोई न कोई कार्यवाही कर अपना पक्ष रखता है।पूर्व राष्ट्रपति के.आर.नारायण के साथ अपनी चीन यात्रा का संस्मरण करते हुए तरुण विजय बताते हैं कि ऐसा उस समय भी हुआ था, तब पैंगॉन्ग (जो कि दुनिया की खारे पानी की सबसे ऊंची झील है और जिसका दो-तिहाई हिस्सा चीन में और एक तिहाई हिस्सा भारत में हैं) में तीन चीनी पेट्रॉल बोट्स ने घुसपैठ की थी। ऐसा ही तब हुआ जब अभी कुछ माह पहले राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर की, तब भी चीन से अरुणाचल पर अपना हक जताया था। ऐसै कमोवेश चीन हमेशा से करता आया है, वह आपकी बात सुनने से पहले अपना दावे ठोकने की कोशिश करता है।
Friday, September 11, 2009
सेना झूठ बोल रही है या फिर विदेश मंत्री?
सेना झूठ बोल रही है या फिर विदेश मंत्री?
8 Sep 2009, 1549 hrs IST,टाइम्स न्यूज नेटवर्क नई दिल्ली ।। लेह इलाके में बढ़ती चीनी घुसपैठ की खबरों के बीच सेना और विदेश मंत्रालय में मतभेद साफ नजर
आ रहा है। दरअसल, सेना के अधिकारियों ने यह माना था कि चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुसे थे और यह उनके लिए एक मुद्दा है जिसपर वे चीनी अधिकारियों के साथ बातचीत करेंगे। लेकिन, विदेश मंत्रालय ने इसके उलट यह कहा कि यह कोई मुद्दा नहीं है और भारत और चीन के बीच की सीमा 'सबसे शांतिपूर्ण' है। विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने कहा कि इस मसले पर (घुसपैठ) भारत और चीन के बीच एक मानक प्रक्रिया है। कृष्णा ने कहा, 'मैं यह ऑन द रेकॉर्ड कह सकता हूं कि दूसरे पड़ोसी देशों के बनिस्बत भारत और चीन की सीमा सबसे शांतिपूर्ण है। इस मुद्दे पर कोई समस्या नहीं है'। यह उन्होंने तब कहा जब पत्रकारों ने उनसे चीन की तथाकथित घुसपैठ (हेलीकॉप्टर और लेह में अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन) के बारे में पूछा। जबकि, जम्मू-कश्मीर से आ रही खबरों के मुताबिक चीनी सैनिकों ने लेह में अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन किया और भारतीय सीमा में कुछ चरवाहों को भी धमकाया। इस मसले पर भारत का रुख अभी तक बेहद संतुलित रहा है और भारत का यह मानना है कि चीन के साथ वास्तवित नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control - LAC) ठीक से परिभाषित नहीं है और सीमा को लेकर चीन, भारत की समझ से इत्तफाक नहीं रखता। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत ने पेइचिंग से LAC के विवादित हिस्सों पर सफाई मांगी है लेकिन चीन ने अबतक इसका जवाब नहीं दिया है। विदेश मंत्री का यह बयान उस वक्त आया है जब भारतीय सेना ने चीनी घुसपैठ के पुख्ता सबूत जुटाए हैं। चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसकर लाल रंग के स्प्रे पेंट से चीनी भाषा में चट्टानों पर चीन लिख दिया। सेना के सूत्र कहते हैं कि इस मामले पर चीनी अधिकारियों के साथ चर्चा की जाएगी। एक अधिकारी के मुताबिक, भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ कोई नई बात नहीं है लेकिन ऐसा पहली बार है कि उन्होंने चट्टानों पर चीन लिख दिया।
भारत के तीस टुकड़े करने का एक चीनी सपना
8 Sep 2009, 1549 hrs IST,टाइम्स न्यूज नेटवर्क नई दिल्ली ।। लेह इलाके में बढ़ती चीनी घुसपैठ की खबरों के बीच सेना और विदेश मंत्रालय में मतभेद साफ नजर
आ रहा है। दरअसल, सेना के अधिकारियों ने यह माना था कि चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुसे थे और यह उनके लिए एक मुद्दा है जिसपर वे चीनी अधिकारियों के साथ बातचीत करेंगे। लेकिन, विदेश मंत्रालय ने इसके उलट यह कहा कि यह कोई मुद्दा नहीं है और भारत और चीन के बीच की सीमा 'सबसे शांतिपूर्ण' है। विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने कहा कि इस मसले पर (घुसपैठ) भारत और चीन के बीच एक मानक प्रक्रिया है। कृष्णा ने कहा, 'मैं यह ऑन द रेकॉर्ड कह सकता हूं कि दूसरे पड़ोसी देशों के बनिस्बत भारत और चीन की सीमा सबसे शांतिपूर्ण है। इस मुद्दे पर कोई समस्या नहीं है'। यह उन्होंने तब कहा जब पत्रकारों ने उनसे चीन की तथाकथित घुसपैठ (हेलीकॉप्टर और लेह में अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन) के बारे में पूछा। जबकि, जम्मू-कश्मीर से आ रही खबरों के मुताबिक चीनी सैनिकों ने लेह में अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन किया और भारतीय सीमा में कुछ चरवाहों को भी धमकाया। इस मसले पर भारत का रुख अभी तक बेहद संतुलित रहा है और भारत का यह मानना है कि चीन के साथ वास्तवित नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control - LAC) ठीक से परिभाषित नहीं है और सीमा को लेकर चीन, भारत की समझ से इत्तफाक नहीं रखता। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत ने पेइचिंग से LAC के विवादित हिस्सों पर सफाई मांगी है लेकिन चीन ने अबतक इसका जवाब नहीं दिया है। विदेश मंत्री का यह बयान उस वक्त आया है जब भारतीय सेना ने चीनी घुसपैठ के पुख्ता सबूत जुटाए हैं। चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसकर लाल रंग के स्प्रे पेंट से चीनी भाषा में चट्टानों पर चीन लिख दिया। सेना के सूत्र कहते हैं कि इस मामले पर चीनी अधिकारियों के साथ चर्चा की जाएगी। एक अधिकारी के मुताबिक, भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ कोई नई बात नहीं है लेकिन ऐसा पहली बार है कि उन्होंने चट्टानों पर चीन लिख दिया।
भारत के तीस टुकड़े करने का एक चीनी सपना
भारत के तीस टुकड़े करने का एक चीनी सपना
भारत के तीस टुकड़े करने का एक चीनी सपना
1 Sep 2009, 0812 hrs IST,नवभारत टाइम्स अवधेश कुमार
हाल के अरसे
में भारत के खिलाफ चीन की आक्रामकता में बढ़ोतरी होती दिखाई दी है। जहां जम्मू - कश्मीर के लेह इलाके में चीनी हेलिकॉप्टरों की घुसपैठ की घटनाएं हुई हैं , वहीं सिक्किम में नाथु - ला पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच हल्के संघर्ष की खबरें भी मिलीं। कुछ ही दिनों पहले एक चीनी थिंक टैंक ने यह सलाह अपनी सरकार को दी है कि चीन को भारत के 20-30 टुकड़े कर देने चाहिए। हालांकि इसी दौरान भारत - चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए वार्ताएं भी हुई हैं , पर इस बीच चीन की तरफ से घुसपैठ आदि की जो घटनाएं हुई हैं , उनसे चीन के व्यवहार और उद्देश्य को लेकर भ्रम पैदा होता है। चीनी थिंक टैंक - चाइना इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज की वेबसाइट पर झान लू नामक लेखक ने लिखा है कि चीन अपने मित्र देशों - पाकिस्तान , बांग्लादेश , नेपाल और भूटान की मदद से तथाकथित भारतीय महासंघ को तोड़ सकता है। झान लू तमिल और कश्मीरियों को आजाद कराने और अल्फा जैसे संगठनों का समर्थन करने की बात भी कहते हैं। झान कहते हैं कि चीन बांग्लादेश को प . बंगाल की आजादी को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित करे , ताकि एक बांग्ला राष्ट्र का उदय हो सके। वह अरुणाचल प्रदेश में 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन को मुक्त कराने की सलाह भी देते हैं। चीनी सरकार को सलाह देने वाले थिंक टैंक की यह वेबसाइट अधिकृत हो या नहीं , पर यह इस बात का प्रमाण तो है ही कि वहां के बुद्धिजीवी अभी भी भारत के बारे में क्या सोचते हैं। ऐसी व्याख्याएं करते वक्त वे यह भूल जाते हैं कि आजादी के बाद भारत के टूट जाने संबंधी उतने सिद्धांत सामने नहीं आए हैं जितने चीन के। चीन की टूट की भविष्यवाणी करने वालों में चीनी सरकार से असंतुष्ट , ताइवानी पृष्ठभूमि से लेकर अन्य श्रेणी के लोग भी शामिल हैं। ये चीन का विखंडन निश्चित मानते हैं। जापान में केनिची ओहमेइ ने लिखा है कि चीन के टूटने के बाद 11 गणराज्य पैदा हो सकते हैं , जो एक ढीलाढाला संघीय गणराज्य कायम कर लेंगे। 1993 में दो विद्वानों ने युगोस्लाविया से तुलना करते हुए चीन की संभावित टूट के प्रति आगाह किया था। उन्होंने केंद्रीय सरकार के वित्तीय केंद्रीकरण की नीति को युगोस्लाविया के समान मानते हुए कहा कि इस वजह से इस देश को एक रख पाना संभव नहीं होगा। सोवियत संघ एवं पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट शासन के ध्वंस काल में अमेरिकी रक्षा विभाग ने चीन के भविष्य के आकलन के लिए एक 13 सदस्यीय पैनल का गठन किया , जिसमें बहुमत से चीन के बिखर जाने की बात कही गई थी। 1995 में यूनिवसिर्टी ऑफ कैलिफोनिर्या के प्रो . जैक गोल्डस्टोन ने फारेन अफेयर्स में लिखे अपने लेख ' द कमिंग चाइनीज कोलैप्स ' में कहा कि अगले 10 से 15 वर्षों में चीन के शासक वर्ग के सामने बड़ा संकट पैदा होगा। इसके संदर्भ में उन्होंने बुजुर्गों की बढ़ती आबादी , कर्मचारियों व किसानों का असंतोष और नेतृत्व के बीच मतभेद का संकट तथा वित्तीय कमजोरियों के कारण नेतृत्व की प्रभावकारी शासन करने की क्षमता में तेज गिरावट आदि का उल्लेख किया था। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के ही गॉर्डन सी . चांग ने अपनी पुस्तक - कमिंग कोलैप्स ऑफ चाइना में चीन की आर्थिक संस्थाओं की कमजोरियों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा है कि विश्व व्यापार संगठन में उसका प्रवेश उसके विघटन का कारण बन जाएगा। ऐसे और भी उदाहरण हो सकते हैं। इसके पक्ष - विपक्ष में मत हो सकते हैं , किंतु कम से कम भारत के बारे में तो ऐसी भविष्यवाणियां नहीं की गई हैं। 1962 में चीन से धोखा खाने और अरुणाचल पर उसके लगातार दावे के बावजूद भारत का कोई नागरिक उसके विखंडित होने की कामना नहीं करता है। लेकिन जब 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ और उसके फलस्वरूप जब दूसरे कम्युनिस्ट देश बिखरने लगे तभी से यह सवाल उठाया जाने लगा था कि क्या अब चीन के टूटने की बारी है ? ताइवान पहले ही उसके नियंत्रण से मुक्त हो चुका है। उसके समर्थकों को चीनी नेता विखंडनवादी ( स्प्लिटिस्ट ) कहते हैं। चीन तो तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से भी खौफ खाता है। इसी तरह शिनच्यांग के उइगुरों के विद्रोह को विदेशी शक्तियों का दुष्टतापूर्ण षडयंत्र कहा गया। चीन इस बात को लेकर आशंकित रहता है कि कहीं शिनच्यांग के मुसलमान मध्य एशिया के साथ न मिल जाएं। चीन दावा करता है कि तिब्बत और शिनच्यांग दोनों सदियों से उसके भाग रहे हैं। किंतु 20 वीं सदी में ही शिनच्यांग में पूवीर् तुकिर्स्तान गणराज्य का प्रभुत्व था , जो 1949 में चाइनीज पीपल्स लिबरेशन आर्मी के दबाव में समाप्त हो गया। स्वतंत्र तिब्बत का इतिहास तो काफी पुराना है। 1912 से 1949 के बीच एक आजाद देश के रूप में तिब्बत के वजूद से तो कोई इनकार नहीं कर सकता। और फिर 1959 में तिब्बतियों के विद्रोह को कौन भूल सकता है ? हालांकि इस समय माना जा रहा है कि तिब्बत या शिनच्यांग के विदोहियों को सफलता मिलना संभव नहीं। दलाई लामा तो अब आजादी की मांग भी नहीं कर रहे हैं। लेकिन तिब्बत की आजादी के समर्थकों की संख्या चाहे जितनी हो और चीन चाहे जितनी निष्ठुरता से भूभागीय अखंडता के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को कुचलने की स्थिति में हो , यह लौ बुझ नहीं सकती। चीन के शासन के खिलाफ पूरा पश्चिमी जगत भी है। पश्चिमी देश तो चाहते हैं कि भारत चीन के खिलाफ खड़ा हो। अगर भारत उनके साथ खड़ा हो गया और तिब्बतियों से लेकर अन्य विक्षुब्ध लोगों अथवा गुटों की , अलगाववादी संघर्ष के लिए ठीक वैसी ही मदद करने लगा जैसे अपने लेख में झान लू ने चीन सरकार को भारत के खिलाफ सुझाव दिए हैं , तो चीन के न जाने कितने टुकड़े हो जाएंगे। इसलिए चीनियों को भारत की ओर उंगली उठाने की जगह अपने बारे में विचार करना चाहिए।
1 Sep 2009, 0812 hrs IST,नवभारत टाइम्स अवधेश कुमार
हाल के अरसे
में भारत के खिलाफ चीन की आक्रामकता में बढ़ोतरी होती दिखाई दी है। जहां जम्मू - कश्मीर के लेह इलाके में चीनी हेलिकॉप्टरों की घुसपैठ की घटनाएं हुई हैं , वहीं सिक्किम में नाथु - ला पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच हल्के संघर्ष की खबरें भी मिलीं। कुछ ही दिनों पहले एक चीनी थिंक टैंक ने यह सलाह अपनी सरकार को दी है कि चीन को भारत के 20-30 टुकड़े कर देने चाहिए। हालांकि इसी दौरान भारत - चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए वार्ताएं भी हुई हैं , पर इस बीच चीन की तरफ से घुसपैठ आदि की जो घटनाएं हुई हैं , उनसे चीन के व्यवहार और उद्देश्य को लेकर भ्रम पैदा होता है। चीनी थिंक टैंक - चाइना इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज की वेबसाइट पर झान लू नामक लेखक ने लिखा है कि चीन अपने मित्र देशों - पाकिस्तान , बांग्लादेश , नेपाल और भूटान की मदद से तथाकथित भारतीय महासंघ को तोड़ सकता है। झान लू तमिल और कश्मीरियों को आजाद कराने और अल्फा जैसे संगठनों का समर्थन करने की बात भी कहते हैं। झान कहते हैं कि चीन बांग्लादेश को प . बंगाल की आजादी को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित करे , ताकि एक बांग्ला राष्ट्र का उदय हो सके। वह अरुणाचल प्रदेश में 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन को मुक्त कराने की सलाह भी देते हैं। चीनी सरकार को सलाह देने वाले थिंक टैंक की यह वेबसाइट अधिकृत हो या नहीं , पर यह इस बात का प्रमाण तो है ही कि वहां के बुद्धिजीवी अभी भी भारत के बारे में क्या सोचते हैं। ऐसी व्याख्याएं करते वक्त वे यह भूल जाते हैं कि आजादी के बाद भारत के टूट जाने संबंधी उतने सिद्धांत सामने नहीं आए हैं जितने चीन के। चीन की टूट की भविष्यवाणी करने वालों में चीनी सरकार से असंतुष्ट , ताइवानी पृष्ठभूमि से लेकर अन्य श्रेणी के लोग भी शामिल हैं। ये चीन का विखंडन निश्चित मानते हैं। जापान में केनिची ओहमेइ ने लिखा है कि चीन के टूटने के बाद 11 गणराज्य पैदा हो सकते हैं , जो एक ढीलाढाला संघीय गणराज्य कायम कर लेंगे। 1993 में दो विद्वानों ने युगोस्लाविया से तुलना करते हुए चीन की संभावित टूट के प्रति आगाह किया था। उन्होंने केंद्रीय सरकार के वित्तीय केंद्रीकरण की नीति को युगोस्लाविया के समान मानते हुए कहा कि इस वजह से इस देश को एक रख पाना संभव नहीं होगा। सोवियत संघ एवं पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट शासन के ध्वंस काल में अमेरिकी रक्षा विभाग ने चीन के भविष्य के आकलन के लिए एक 13 सदस्यीय पैनल का गठन किया , जिसमें बहुमत से चीन के बिखर जाने की बात कही गई थी। 1995 में यूनिवसिर्टी ऑफ कैलिफोनिर्या के प्रो . जैक गोल्डस्टोन ने फारेन अफेयर्स में लिखे अपने लेख ' द कमिंग चाइनीज कोलैप्स ' में कहा कि अगले 10 से 15 वर्षों में चीन के शासक वर्ग के सामने बड़ा संकट पैदा होगा। इसके संदर्भ में उन्होंने बुजुर्गों की बढ़ती आबादी , कर्मचारियों व किसानों का असंतोष और नेतृत्व के बीच मतभेद का संकट तथा वित्तीय कमजोरियों के कारण नेतृत्व की प्रभावकारी शासन करने की क्षमता में तेज गिरावट आदि का उल्लेख किया था। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के ही गॉर्डन सी . चांग ने अपनी पुस्तक - कमिंग कोलैप्स ऑफ चाइना में चीन की आर्थिक संस्थाओं की कमजोरियों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा है कि विश्व व्यापार संगठन में उसका प्रवेश उसके विघटन का कारण बन जाएगा। ऐसे और भी उदाहरण हो सकते हैं। इसके पक्ष - विपक्ष में मत हो सकते हैं , किंतु कम से कम भारत के बारे में तो ऐसी भविष्यवाणियां नहीं की गई हैं। 1962 में चीन से धोखा खाने और अरुणाचल पर उसके लगातार दावे के बावजूद भारत का कोई नागरिक उसके विखंडित होने की कामना नहीं करता है। लेकिन जब 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ और उसके फलस्वरूप जब दूसरे कम्युनिस्ट देश बिखरने लगे तभी से यह सवाल उठाया जाने लगा था कि क्या अब चीन के टूटने की बारी है ? ताइवान पहले ही उसके नियंत्रण से मुक्त हो चुका है। उसके समर्थकों को चीनी नेता विखंडनवादी ( स्प्लिटिस्ट ) कहते हैं। चीन तो तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा से भी खौफ खाता है। इसी तरह शिनच्यांग के उइगुरों के विद्रोह को विदेशी शक्तियों का दुष्टतापूर्ण षडयंत्र कहा गया। चीन इस बात को लेकर आशंकित रहता है कि कहीं शिनच्यांग के मुसलमान मध्य एशिया के साथ न मिल जाएं। चीन दावा करता है कि तिब्बत और शिनच्यांग दोनों सदियों से उसके भाग रहे हैं। किंतु 20 वीं सदी में ही शिनच्यांग में पूवीर् तुकिर्स्तान गणराज्य का प्रभुत्व था , जो 1949 में चाइनीज पीपल्स लिबरेशन आर्मी के दबाव में समाप्त हो गया। स्वतंत्र तिब्बत का इतिहास तो काफी पुराना है। 1912 से 1949 के बीच एक आजाद देश के रूप में तिब्बत के वजूद से तो कोई इनकार नहीं कर सकता। और फिर 1959 में तिब्बतियों के विद्रोह को कौन भूल सकता है ? हालांकि इस समय माना जा रहा है कि तिब्बत या शिनच्यांग के विदोहियों को सफलता मिलना संभव नहीं। दलाई लामा तो अब आजादी की मांग भी नहीं कर रहे हैं। लेकिन तिब्बत की आजादी के समर्थकों की संख्या चाहे जितनी हो और चीन चाहे जितनी निष्ठुरता से भूभागीय अखंडता के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को कुचलने की स्थिति में हो , यह लौ बुझ नहीं सकती। चीन के शासन के खिलाफ पूरा पश्चिमी जगत भी है। पश्चिमी देश तो चाहते हैं कि भारत चीन के खिलाफ खड़ा हो। अगर भारत उनके साथ खड़ा हो गया और तिब्बतियों से लेकर अन्य विक्षुब्ध लोगों अथवा गुटों की , अलगाववादी संघर्ष के लिए ठीक वैसी ही मदद करने लगा जैसे अपने लेख में झान लू ने चीन सरकार को भारत के खिलाफ सुझाव दिए हैं , तो चीन के न जाने कितने टुकड़े हो जाएंगे। इसलिए चीनियों को भारत की ओर उंगली उठाने की जगह अपने बारे में विचार करना चाहिए।
रखे-रखे सड़ गया 5,300 टन गेहूं
रखे-रखे सड़ गया 5,300 टन गेहूं
11 Sep 2009, 0812 hrs IST,टाइम्स न्यूज नेटवर्क नई दिल्ली ।। यह एक ऐसी बर्बादी है जो देश को काफी महंगी साबित हो सकती है। ऐसे साल जब देश के एक बड़े हिस
्से में सूखे की स्थिति से खरीफ की फसल पर बुरा असर पड़ सकता है, देश के कई हिस्सों में खाद्यान्नों की बर्बादी की खबरें हैं। ऐसा स्टोरेज की कमी और एक जगह से दूसरी जगह लाने-ले जाने की लचर व्यवस्था के कारण है। पंजाब के तरन तारन में करीब 5,300 टन गेहूं, जिसकी कीमत करीब 5 करोड़ रुपये होगी, अधिकारियों की उपेक्षा से सड़ चुका है। यह जानवरों के खाने लायक भी नहीं रह गया है इसलिए अब इसे फर्टिलाइजर बनाने के लिए नीलाम किया जाएगा। यह गेहूं करीब 30,000 लोगों के लिए एक साल की रोटी के काम आ सकता था। रिपोर्टों के मुताबिक, राज्य सरकार ने यह गेहूं 2006-07 में खरीदा था और इसे एस. के. राइस मिल के कॉम्प्लेक्स में स्टोर किया गया था। गेहूं के बोरे जिस लकड़ी के बेस पर रखे थे, उसने बारिश के मौसम में कीड़ों के पनपने के लिए रास्ता खोल दिया। इससे पानी से सुरक्षा के लिए लगाया गया तरपाल कवर भी बेकार हो गया और गेहूं पूरी तरह कीड़ों के हवाले हो गया। जिले के फूड ऐंड सिविल सप्लाई कंट्रोलर राकेश कुमार सिंगला ने बताया कि गेहूं सड़ चुका है और अब जल्दी ही इसकी नीलामी की तारीख का ऐलान कर दिया जाएगा। अन्न की बर्बादी का यह अकेला मामला नहीं है। 21 अगस्त को टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी थी कि चंडीगढ़ से 50 किलोमीटर दूर खमानू में गेहूं के लाखों बैग, जो 50-50 किलो के थे, खुले में रखे जाने से खराब हो चुका है। एक किसान गुरमीत सिंह (72) ने बताया कि पिछले दो साल में मैंने किसी को भी इस गेहूं को ढकते हुए नहीं देखा है। एक सवाल के जवाब में बीती 4 अगस्त को संसद में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कुछ आंकड़े जारी किए थे। इसके मुताबिक, इस वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में ही देश में गेहूं और चावल का करीब 0.62 पर्सेंट स्टॉक लाने-ले जाने और खराब स्टोरेज के कारण बर्बाद हो चुका है।हालांकि फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की स्टोरेज सुविधाएं आमतौर पर अच्छी हैं, पर एग्रीकल्चर एक्सपर्ट्स के मुताबिक राज्यों की वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशनें अक्सर न्यूनतम सुरक्षा उपाय भी नहीं अपनातीं। अन्न की बर्बादी का एक बड़ा कारण गोदामों की कमी का होना है। उड़ीसा में यह समस्या ज्यादा गहरी है। वहां स्टोरेज सुविधाएं ना होने से ना तो राज्य सरकार ज्यादा खरीद कर पाती है और ना ही किसान माल सही मात्रा में बेच पाते हैं। बिहार में चावल का सरप्लस है पर गोदामों की कमी वहां बड़ा संकट है।
11 Sep 2009, 0812 hrs IST,टाइम्स न्यूज नेटवर्क नई दिल्ली ।। यह एक ऐसी बर्बादी है जो देश को काफी महंगी साबित हो सकती है। ऐसे साल जब देश के एक बड़े हिस
्से में सूखे की स्थिति से खरीफ की फसल पर बुरा असर पड़ सकता है, देश के कई हिस्सों में खाद्यान्नों की बर्बादी की खबरें हैं। ऐसा स्टोरेज की कमी और एक जगह से दूसरी जगह लाने-ले जाने की लचर व्यवस्था के कारण है। पंजाब के तरन तारन में करीब 5,300 टन गेहूं, जिसकी कीमत करीब 5 करोड़ रुपये होगी, अधिकारियों की उपेक्षा से सड़ चुका है। यह जानवरों के खाने लायक भी नहीं रह गया है इसलिए अब इसे फर्टिलाइजर बनाने के लिए नीलाम किया जाएगा। यह गेहूं करीब 30,000 लोगों के लिए एक साल की रोटी के काम आ सकता था। रिपोर्टों के मुताबिक, राज्य सरकार ने यह गेहूं 2006-07 में खरीदा था और इसे एस. के. राइस मिल के कॉम्प्लेक्स में स्टोर किया गया था। गेहूं के बोरे जिस लकड़ी के बेस पर रखे थे, उसने बारिश के मौसम में कीड़ों के पनपने के लिए रास्ता खोल दिया। इससे पानी से सुरक्षा के लिए लगाया गया तरपाल कवर भी बेकार हो गया और गेहूं पूरी तरह कीड़ों के हवाले हो गया। जिले के फूड ऐंड सिविल सप्लाई कंट्रोलर राकेश कुमार सिंगला ने बताया कि गेहूं सड़ चुका है और अब जल्दी ही इसकी नीलामी की तारीख का ऐलान कर दिया जाएगा। अन्न की बर्बादी का यह अकेला मामला नहीं है। 21 अगस्त को टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी थी कि चंडीगढ़ से 50 किलोमीटर दूर खमानू में गेहूं के लाखों बैग, जो 50-50 किलो के थे, खुले में रखे जाने से खराब हो चुका है। एक किसान गुरमीत सिंह (72) ने बताया कि पिछले दो साल में मैंने किसी को भी इस गेहूं को ढकते हुए नहीं देखा है। एक सवाल के जवाब में बीती 4 अगस्त को संसद में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कुछ आंकड़े जारी किए थे। इसके मुताबिक, इस वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में ही देश में गेहूं और चावल का करीब 0.62 पर्सेंट स्टॉक लाने-ले जाने और खराब स्टोरेज के कारण बर्बाद हो चुका है।हालांकि फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की स्टोरेज सुविधाएं आमतौर पर अच्छी हैं, पर एग्रीकल्चर एक्सपर्ट्स के मुताबिक राज्यों की वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशनें अक्सर न्यूनतम सुरक्षा उपाय भी नहीं अपनातीं। अन्न की बर्बादी का एक बड़ा कारण गोदामों की कमी का होना है। उड़ीसा में यह समस्या ज्यादा गहरी है। वहां स्टोरेज सुविधाएं ना होने से ना तो राज्य सरकार ज्यादा खरीद कर पाती है और ना ही किसान माल सही मात्रा में बेच पाते हैं। बिहार में चावल का सरप्लस है पर गोदामों की कमी वहां बड़ा संकट है।
बीरबल की खिचड़ी बन गई शीला की दाल
बीरबल की खिचड़ी बन गई शीला की दाल
30 Jul 2009, 0831 hrs IST,नवभारत टाइम्स प्रिन्ट ईमेल Discuss शेयर सेव कमेन्ट टेक्स्ट:
नई दिल्ली ।। दालों की बढ़ती कीमत से दिल्लीवासियों को राहत दिलाने का दिल्ली सरकार का फॉर्म्युला पहले ही दिन फ्लॉप शो साबित हुआ। काफी जगहों पर दालों का स्टॉक नहीं पहुंचा और जहां पहुंचा भी तो बेहद देरी से। कई जगह तो सस्ती दाल बिकने के बारे में बैनर भी नहीं लगे थे। पूरी दिल्ली में लोग सुबह 9 बजे से ही सस्ते दाम पर दाल खरीदने पहुंचने लगे थे , लेकिन तीन से चार घंटे तक इंतजार करने के बाद आखिरकार लोगों को मायूस होकर लौटना पड़ा। साउथ दिल्ली के पुष्प विहार में तो लोगों का सब्र जवाब दे गया और उन्होंने सर्कल ऑफिस के बाहर खूब हंगामा किया। उधर , दिल्ली के फूड और सप्लाई मंत्री हारून यूसुफ ने ट्रैफिक जाम को दालों के देर से पहुंचने की वजह बताया है। दाल के दामों में पिछले कुछ दिनों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में लोगों को सस्ती दामों पर दालें उपलब्ध कराने के लिए दिल्ली सरकार ने अपने फूड डिपार्टमंट के सभी सर्किल ऑफिसों के अलावा दिल्ली सचिवालय में बुधवार से दालों की बिक्री शुरू करने की घोषणा की थी। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि दिल्ली के 80 सेंटरों में से लगभग 40 पर ही दाल पहुंची। हालांकि इनमें से भी कई सेंटरों पर शाम तक ही स्टॉक पहुंच सका। हालांकि हारून यूसुफ का दावा है कि 65 सर्किलों पर दाल पहुंचा दी गई। उनका कहना है कि सरकार के पास दाल की कमी नहीं है और राजधानी में जब तक दालों की कीमतें सामान्य स्तर पर नहीं आ जातीं , तब तक सरकार लोगों को सस्ते दाम पर दाल उपलब्ध कराती रहेगी। उन्होंने बताया कि बुधवार को ट्रैफिक जाम की वजह से दालों से लदे ट्रक सही समय तक सर्किल ऑफिसों तक नहीं पहुंच पाए। गुरुवार से दाल की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए विभाग के एक अधिकारी को एक ट्रक के साथ तैनात किया जाएगा। शालीमार बाग में रहने वाले एक बुजुर्ग बी . एन . कृष्णन सुबह 9 बजे ही सस्ती दाल लेने फूड डिपार्टमेंट के सर्किल ऑफिस पहुंच गए थे। धीरे - धीरे वहां और लोग भी जुटने लगे। अधिकारियों को भी दाल के देरी से आने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। आखिरकार करीब साढ़े तीन घंटे की देरी से एक टेम्पो दाल लेकर पहुंचा।
30 Jul 2009, 0831 hrs IST,नवभारत टाइम्स प्रिन्ट ईमेल Discuss शेयर सेव कमेन्ट टेक्स्ट:
नई दिल्ली ।। दालों की बढ़ती कीमत से दिल्लीवासियों को राहत दिलाने का दिल्ली सरकार का फॉर्म्युला पहले ही दिन फ्लॉप शो साबित हुआ। काफी जगहों पर दालों का स्टॉक नहीं पहुंचा और जहां पहुंचा भी तो बेहद देरी से। कई जगह तो सस्ती दाल बिकने के बारे में बैनर भी नहीं लगे थे। पूरी दिल्ली में लोग सुबह 9 बजे से ही सस्ते दाम पर दाल खरीदने पहुंचने लगे थे , लेकिन तीन से चार घंटे तक इंतजार करने के बाद आखिरकार लोगों को मायूस होकर लौटना पड़ा। साउथ दिल्ली के पुष्प विहार में तो लोगों का सब्र जवाब दे गया और उन्होंने सर्कल ऑफिस के बाहर खूब हंगामा किया। उधर , दिल्ली के फूड और सप्लाई मंत्री हारून यूसुफ ने ट्रैफिक जाम को दालों के देर से पहुंचने की वजह बताया है। दाल के दामों में पिछले कुछ दिनों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में लोगों को सस्ती दामों पर दालें उपलब्ध कराने के लिए दिल्ली सरकार ने अपने फूड डिपार्टमंट के सभी सर्किल ऑफिसों के अलावा दिल्ली सचिवालय में बुधवार से दालों की बिक्री शुरू करने की घोषणा की थी। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि दिल्ली के 80 सेंटरों में से लगभग 40 पर ही दाल पहुंची। हालांकि इनमें से भी कई सेंटरों पर शाम तक ही स्टॉक पहुंच सका। हालांकि हारून यूसुफ का दावा है कि 65 सर्किलों पर दाल पहुंचा दी गई। उनका कहना है कि सरकार के पास दाल की कमी नहीं है और राजधानी में जब तक दालों की कीमतें सामान्य स्तर पर नहीं आ जातीं , तब तक सरकार लोगों को सस्ते दाम पर दाल उपलब्ध कराती रहेगी। उन्होंने बताया कि बुधवार को ट्रैफिक जाम की वजह से दालों से लदे ट्रक सही समय तक सर्किल ऑफिसों तक नहीं पहुंच पाए। गुरुवार से दाल की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए विभाग के एक अधिकारी को एक ट्रक के साथ तैनात किया जाएगा। शालीमार बाग में रहने वाले एक बुजुर्ग बी . एन . कृष्णन सुबह 9 बजे ही सस्ती दाल लेने फूड डिपार्टमेंट के सर्किल ऑफिस पहुंच गए थे। धीरे - धीरे वहां और लोग भी जुटने लगे। अधिकारियों को भी दाल के देरी से आने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। आखिरकार करीब साढ़े तीन घंटे की देरी से एक टेम्पो दाल लेकर पहुंचा।
पड़ोसियों से विवाद
पड़ोसियों से विवाद
भारत-चीन सीमा विवादःइतिहास से सबक की जरूरत (9th Sep 09)
भास्कर डॉट कॉम
चीनी सेना ने लद्दाख में कई जगहों पर घुसकर चट्टानों को लाल रंग से रंग दिया है, कई स्थानों पर अपने झंडे लगा दिए हैं। हमारी सेना इनकार कर रही है। रक्षामंत्री कह रहे हैं कि कोई विवादित मुद्दा नहीं है। लद्दाख की सीमाओं पर एकदम शांति है। वे पूरे मामले को मीडिया की देन बता रहे हैं। उधर चीनी विदेश मंत्रालय ने भी इसे पूरी तरह से आधारहीन बताया है। वहां के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि दोनों देशों की सेनाएं सीमाओं का सम्मान कर रही हैं। दोनों ही तरफ से लॉ एंड आर्डर को बनाए रखा जा रहा है। अरूणांचल प्रदेश में भी चीनी सेना की घुसपैठ चलती रहती है। दोनों ही क्षेत्रों की ऐसी गतिविधियों के बारे में रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि कहीं तो आग होगी तभी धुआं दिखाई दे रहा है। चीनी सरकार भले ही इस मामले को दबने का प्रयास कर रही हों, लेकिन चीन की सेना लगातार घुसपैठ कर रही है, इसमें शक नहीं है। बहरहाल कुछ भी हो। पूरे मुद्दे पर अतीत से सबक सीखे जाने की जरूरत है। नेहरू युग में भी इसी तरह की परिस्थितियों में हमें ना सिर्फ एक बेहद खर्चीला युद्ध लड़ना पड़ा था बल्कि चीन ने भारत का लाखों वर्ग किमी भू-भाग हथिया लिया था बल्कि आज तक उसे कब्जे में रखे हैं। हम न तो चीन से इस मुद्दे पर कभी खुलकर बात कर पाए ना ही उसे साफ शब्दों में अपने सीमांत हितों पर चेतावनी दे पाए थे। समस्या हमारी विदेश नीति में छुपी है। हमें कभी भी राष्ट्रीय हितों को लेकर उग्र नीति अपनाने वाले देशों मे नहीं गिना गया है। अन्य राष्ट्रों के बीच हमारी छवि कुछ कमजोर और दब्बू देश की है, जो अपने हितों पर ढुलमुल सा रवैया अपनाता है। आजतक अपने हितों की पैरवी के लिए आक्रमक रूख अपनाते नहीं देखा गया। कश्मीर का प्रश्न हो या आतंकवाद का मुद्दा या इसी तरह का कोई अन्य मसला हमारी इसी कमजोरी के चलते हम अकसर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गच्चा खाते रहे हैं। ऐसे में हमें अतीत से सबक लेकर इसी बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि फिर हमारी कमजोरी हमारे भविष्य को कलंकित ना कर दे...
भारत-चीन सीमा विवादःइतिहास से सबक की जरूरत (9th Sep 09)
भास्कर डॉट कॉम
चीनी सेना ने लद्दाख में कई जगहों पर घुसकर चट्टानों को लाल रंग से रंग दिया है, कई स्थानों पर अपने झंडे लगा दिए हैं। हमारी सेना इनकार कर रही है। रक्षामंत्री कह रहे हैं कि कोई विवादित मुद्दा नहीं है। लद्दाख की सीमाओं पर एकदम शांति है। वे पूरे मामले को मीडिया की देन बता रहे हैं। उधर चीनी विदेश मंत्रालय ने भी इसे पूरी तरह से आधारहीन बताया है। वहां के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि दोनों देशों की सेनाएं सीमाओं का सम्मान कर रही हैं। दोनों ही तरफ से लॉ एंड आर्डर को बनाए रखा जा रहा है। अरूणांचल प्रदेश में भी चीनी सेना की घुसपैठ चलती रहती है। दोनों ही क्षेत्रों की ऐसी गतिविधियों के बारे में रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि कहीं तो आग होगी तभी धुआं दिखाई दे रहा है। चीनी सरकार भले ही इस मामले को दबने का प्रयास कर रही हों, लेकिन चीन की सेना लगातार घुसपैठ कर रही है, इसमें शक नहीं है। बहरहाल कुछ भी हो। पूरे मुद्दे पर अतीत से सबक सीखे जाने की जरूरत है। नेहरू युग में भी इसी तरह की परिस्थितियों में हमें ना सिर्फ एक बेहद खर्चीला युद्ध लड़ना पड़ा था बल्कि चीन ने भारत का लाखों वर्ग किमी भू-भाग हथिया लिया था बल्कि आज तक उसे कब्जे में रखे हैं। हम न तो चीन से इस मुद्दे पर कभी खुलकर बात कर पाए ना ही उसे साफ शब्दों में अपने सीमांत हितों पर चेतावनी दे पाए थे। समस्या हमारी विदेश नीति में छुपी है। हमें कभी भी राष्ट्रीय हितों को लेकर उग्र नीति अपनाने वाले देशों मे नहीं गिना गया है। अन्य राष्ट्रों के बीच हमारी छवि कुछ कमजोर और दब्बू देश की है, जो अपने हितों पर ढुलमुल सा रवैया अपनाता है। आजतक अपने हितों की पैरवी के लिए आक्रमक रूख अपनाते नहीं देखा गया। कश्मीर का प्रश्न हो या आतंकवाद का मुद्दा या इसी तरह का कोई अन्य मसला हमारी इसी कमजोरी के चलते हम अकसर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गच्चा खाते रहे हैं। ऐसे में हमें अतीत से सबक लेकर इसी बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि फिर हमारी कमजोरी हमारे भविष्य को कलंकित ना कर दे...
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