Sunday, July 26, 2009

क्या मरीजों को भूल गए डॉक्टर

जूनियर व रेजीडेंट डॉक्टरों की आए दिन होने वाली हडतालों से गरीब और जरूरतमंद रोगी परेशानी में पड रहे हैं। उन्हें इलाज के लिए मोहताज होना पड रहा है। सरकार की नीतियां और डॉक्टरों के हठ से अस्पतालों की व्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं। इसी मसले पर केन्द्रित है इस बार का हडताल को दो तरह से देखते हैं। मांगें न्यायोचित हैं या नहीं। यदि न्यायोचित हैं तो हडताल करने वाले संवेदनहीन नहीं हैं। जहां खतरा खुद या संस्थान के भविष्य को लेकर हो तो उसके लिए आंदोलन होने ही चाहिए। कम से कम इससे वास्तविक समस्या और उस मुद्दे पर सरकार की संवेदनहीनता तो उजागर होगी।
सरकार की बेरूखी है जिसकी वजह से हडताल हुई। इसलिए हडताल के दौरान होने वाली किसी समस्या के लिए सरकार को जिम्मेदार माना जाए।
सरकार जनप्रतिनिधि की भूमिका छोड खुद को तानाशाह या राजा साबित कर कोई सुनवाई नहीं करती तो मजबूरी में हडताल पर जाने का निर्णय किया जाता है।
सीनियर डॉक्टर हाें या पैरा मेडिकल स्टाफ सभी अपनी जिम्मेदारी जूनियर डॉक्टरों पर डाल उनसे अधिक से अधिक काम लेते हैं। इस व्यवस्था ने सीनियर डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ को काफी हद तक लापरवाह बना दिया है।
बिल्कुल लगनी चाहिए, लेकिन यदि वह कर्मचारी है तब। छात्रों पर नहीं लगाना चाहिए।
देश में डॉक्टरों की संख्या कम नहीं है। हां, किसी राज्य में कम हैं तो किसी मे अधिक। केंद्र और राज्य सरकार को इस विसंगति को दूर करने के लिए प्रयास करने चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे मेडिकल कॉलेजों की मनमानी पर लगाम कसे।
जूनियर डॉक्टरों की हडताल उनकी संवेदनहीनता का मामूली खुलासा है। दरअसल, उन्हें वे सुविधाएं और वेतन भत्ते नहीं मिल रहे हैं, जो उन्हें संवेदनशील बनाए रखने के लिए जरूरी हैं।
कोई डॉक्टर वास्तव में लापरवाही कर रहा है और इससे किसी मरीज की जान खतरे में पड रही है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
हडतालें तभी होती हैं, जबकि सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से आंखें फेर लें। व्यवस्थापिका और कार्यपालिका को चाहिए कि वे डॉक्टरों की हडतालों को टालने के भरसक प्रयास करें, ताकि मरीज को उपचार मुहैया हो सके।
सीनियर डॉक्टर अस्पतालों में उतनी सेवाएं नहीं दे पाते, जितनी जरूरी हैं। यही वजह है कि काम का बोझ जूनियर और रेजीडेंट्स पर पडता है। इसके दबाव में उनमें हताशा और निराशा का भाव पैदा हो जाता है। कई बार डॉक्टरों को बगैर रूके 24 घंटे तक काम करना होता है। ऎसे में वे हडताल की तरफ अग्रसर होते हैं।
चिकित्सा अत्यावश्यक सेवा है, लेकिन इसे सेना या पुलिस की तरह नहीं देखा जा सकता। डॉक्टरों की हडताल पर कानूनी रोक लगाने के बजाय उनकी मांगों को हल करने की जरूरत है।
चिकित्सा शिक्षा में कòरियर बनाने वालों की संख्या लगातार घट रही है। देश में डॉक्टरों की कम संख्या से हडताल को बढावा मिलना, विभिन्न कारणों में से एक हो सकता है।