अहले-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
एक हम ही नहीं दुनिया से खफा और भी हैं
हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदासरी
चाक दिल और भी हैं चाक कबा और भी हैं
क्या हुआ अगर मेरे यारों की ज़ुबानें चुप हैं
मेरे शाहिद मेरे यारों के सिवा और भी हैं
सर सलामत है तो क्या संग-ए-मलामत की कमी
जान बाकी है तो पैकान-ए-कज़ा और भी हैं
मुंसिफ-ए-शहर की वहदत पे ना हरफ आ जाये
लोग कहते हैं की अरबाब-ए-जफ़ा और भी हैं
Tuesday, May 19, 2009
खुली आंखों में सपना झांकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है!
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में
मेरा तन, मोर बन कर नाचता है
मुझे हर कैफियत में क्यूँ न समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है
मैं उसकी दस्तरस में हूँ, मगर वोह
मुझे मेरी रज़ा से माँगता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
सड़क को छोड़ कर चलना पडेगा
कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है!
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में
मेरा तन, मोर बन कर नाचता है
मुझे हर कैफियत में क्यूँ न समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है
मैं उसकी दस्तरस में हूँ, मगर वोह
मुझे मेरी रज़ा से माँगता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
सड़क को छोड़ कर चलना पडेगा
कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है
बेअमल को दुन्या में राहतें नहीं मिलतीं
दोस्तों दुआओं से जन्नतें नहीं मिलतीं
इस नए ज़माने के आदमी अधूरे हैं
सूरतें तो मिलती हैं, सीरतें नहीं मिलतीं
अपने बल पे लड़ती है अपनी जंग हर पीढ़ी
नाम से बुजुर्गों के अज्मतें नहीं मिलतीं
जो परिंदे आंधी का सामना नहीं करते
उनको आसमानों की रफतें नहीं मिलतीं
इस चमन में गुल बूटे खून से नहाते हैं
सब को ही गुलाबों की किस्मतें नहीं मिलतीं
शोहरतों पे इतरा कर खुद को जो खुदा समझे
मंज़र ऐसे लोगों की तुर्बतें नहीं मिलतीं
दोस्तों दुआओं से जन्नतें नहीं मिलतीं
इस नए ज़माने के आदमी अधूरे हैं
सूरतें तो मिलती हैं, सीरतें नहीं मिलतीं
अपने बल पे लड़ती है अपनी जंग हर पीढ़ी
नाम से बुजुर्गों के अज्मतें नहीं मिलतीं
जो परिंदे आंधी का सामना नहीं करते
उनको आसमानों की रफतें नहीं मिलतीं
इस चमन में गुल बूटे खून से नहाते हैं
सब को ही गुलाबों की किस्मतें नहीं मिलतीं
शोहरतों पे इतरा कर खुद को जो खुदा समझे
मंज़र ऐसे लोगों की तुर्बतें नहीं मिलतीं
yaqeen
मेरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा
गिरा दिया है तो साहिल पे इंतज़ार न कर
अगर वोह डूब गया है तो दूर निकलेगा
उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ
हमीं यकीन था, हमारा कुसूर निकलेगा
यकीन न आये तो एक बार पूछ कर देखो
जो हंस रहा है वोह ज़ख्मों से चूर निकलेगा
इसी सियाह समंदर से नूर निकलेगा
गिरा दिया है तो साहिल पे इंतज़ार न कर
अगर वोह डूब गया है तो दूर निकलेगा
उसी का शहर, वही मुद्दई, वही मुंसिफ
हमीं यकीन था, हमारा कुसूर निकलेगा
यकीन न आये तो एक बार पूछ कर देखो
जो हंस रहा है वोह ज़ख्मों से चूर निकलेगा
आर्थिक सुधारों को गति दी जाएः मनमोहन
कांग्रेस संसदीय दल द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए लगातार दूसरी बार अ©पचारिक रूप से नामित होने वाले मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों को गति देने की अपील करते हुए आज कहा कि भारत पूरब की विकास कर रही अर्थव्यवस्थाअ¨ं से पीछे रहने का जोखिम नहीं उठा सकता। डाॅ. सिंह ने कहा कि हम अब बस छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते। उन्होंने संकेत किया कि एशिया के कई देश आगे बढ़ रहे हैं और विकास की गति का रुख पश्चिम से पूर्व की अ¨र मुड़ने का मंजर दुनिया देख रही है। संसद के केन्द्रीय कक्ष में आज सुबह कांग्रेस संसदीय दल के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत एक बार फिर महान लोकतंत्र के रूप में सिर उठाकर खड़ा है। लेकिन हमारे समक्ष कड़ी चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के प्रति जबरदस्त जनादेश जनता की बढ़ी हुई आकांक्षाअ¨ं के रूप में चुनौती साथ लेकर आया है। जनता अब चालू काम को बरदाश्त नहीं करेगी। सिंह ने कहा कि जनता हमसे नई ऊर्जा शक्ति की उम्मीद कर रही है। वह उम्मीद करती है कि सरकार उसकी आकांक्षाअ¨ं पर खरी उतरे। वह अधिक जिम्मेदार और कुशल सरकार चाहती है। उन्होंने कहा कि सतत विकास दर बनाए रखने के लिए नए निवेश की आवश्यकता है। इसके लिए ऐसा राजनीतिक एवं सामाजिक माहौल तैयार करना होगा जिसमें नया निवेश हो सके, इसके लिए अर्थव्यवस्था में सुधारों की आवश्यकता है।प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है अ©र विकास की गति बनाए रखने के लिए अ©द्योगिक विकास की गति को भी तेज करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बचत अ©र निवेश दरों को ऊंचा रखना जरूरी है और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के आलोक में अधिक वैश्विक प्रतिस्पर्धी बनना भी आवश्यक है। सिंह ने कहा कि यदि देश विकास की सतत गति बनाए रखता है तो गरीबी कम हो सकती है, रोजगार के नए अवसर सृजित हो सकते हैं, ग्रामीण विकास की गति तेज हो सकती है और औद्योगीकरण से जनता का जीवन बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि आने वाला समय निर्णायक है। हम मजबूती से आगे बढ़ना है। उन्होंने राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर सभी राजनीतिक दलों के सदस्यों की अ¨र दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए उन्हें रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की जनता ने हमें शानदार जनादेश दिया है। उसने सत्ता विरोधी फैशनेबल सिद्धांत को कूड़ेदान में डाल दिया है। लेकिन हमें संपूर्ण जनादेश अपने पक्ष में करने के लिए अ©र कड़ी मेहनत और बेहतर प्रदर्शन करना होगा। यह हमारी पार्टी अ©र सरकार के लिए एक चुनौती है। उन्होंने सोनिया गांधी की नेतृत्व क्षमता और युवा नेता राहुल गांधी की कड़ी मेहनत को कांग्रेस की प्रभावशाली जीत की वजह बताते हुए दोनों के प्रति आभार व्यक्त किया।
कांग्रेस संसदीय दल द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए लगातार दूसरी बार अ©पचारिक रूप से नामित होने वाले मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों को गति देने की अपील करते हुए आज कहा कि भारत पूरब की विकास कर रही अर्थव्यवस्थाअ¨ं से पीछे रहने का जोखिम नहीं उठा सकता। डाॅ. सिंह ने कहा कि हम अब बस छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते। उन्होंने संकेत किया कि एशिया के कई देश आगे बढ़ रहे हैं और विकास की गति का रुख पश्चिम से पूर्व की अ¨र मुड़ने का मंजर दुनिया देख रही है। संसद के केन्द्रीय कक्ष में आज सुबह कांग्रेस संसदीय दल के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत एक बार फिर महान लोकतंत्र के रूप में सिर उठाकर खड़ा है। लेकिन हमारे समक्ष कड़ी चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के प्रति जबरदस्त जनादेश जनता की बढ़ी हुई आकांक्षाअ¨ं के रूप में चुनौती साथ लेकर आया है। जनता अब चालू काम को बरदाश्त नहीं करेगी। सिंह ने कहा कि जनता हमसे नई ऊर्जा शक्ति की उम्मीद कर रही है। वह उम्मीद करती है कि सरकार उसकी आकांक्षाअ¨ं पर खरी उतरे। वह अधिक जिम्मेदार और कुशल सरकार चाहती है। उन्होंने कहा कि सतत विकास दर बनाए रखने के लिए नए निवेश की आवश्यकता है। इसके लिए ऐसा राजनीतिक एवं सामाजिक माहौल तैयार करना होगा जिसमें नया निवेश हो सके, इसके लिए अर्थव्यवस्था में सुधारों की आवश्यकता है।प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है अ©र विकास की गति बनाए रखने के लिए अ©द्योगिक विकास की गति को भी तेज करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बचत अ©र निवेश दरों को ऊंचा रखना जरूरी है और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के आलोक में अधिक वैश्विक प्रतिस्पर्धी बनना भी आवश्यक है। सिंह ने कहा कि यदि देश विकास की सतत गति बनाए रखता है तो गरीबी कम हो सकती है, रोजगार के नए अवसर सृजित हो सकते हैं, ग्रामीण विकास की गति तेज हो सकती है और औद्योगीकरण से जनता का जीवन बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि आने वाला समय निर्णायक है। हम मजबूती से आगे बढ़ना है। उन्होंने राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर सभी राजनीतिक दलों के सदस्यों की अ¨र दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए उन्हें रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की जनता ने हमें शानदार जनादेश दिया है। उसने सत्ता विरोधी फैशनेबल सिद्धांत को कूड़ेदान में डाल दिया है। लेकिन हमें संपूर्ण जनादेश अपने पक्ष में करने के लिए अ©र कड़ी मेहनत और बेहतर प्रदर्शन करना होगा। यह हमारी पार्टी अ©र सरकार के लिए एक चुनौती है। उन्होंने सोनिया गांधी की नेतृत्व क्षमता और युवा नेता राहुल गांधी की कड़ी मेहनत को कांग्रेस की प्रभावशाली जीत की वजह बताते हुए दोनों के प्रति आभार व्यक्त किया।
बसपा संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन देगी
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने आज यहां कहा कि बसपा ने कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को बिना शर्त बाहर से समर्थन देने का निर्णय किया है। मायावती ने आज यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आज सुबह हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह तय किया गया है कि जनता के फैसले का सम्मान करते हुए बहुजन समाज पार्टी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन देगी। मायावती ने कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र को अधिकृत किया गया है कि वह समर्थन की चिट्टी ले जाकर राष्ट्रपति अ©र संप्रग अध्यक्ष को सौंपें।
मायावती ने बताया कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में संप्रग सरकार की जीत पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बधाई देने के लिए फोन किया था। मायावती के अनुसार फोन पर प्रधानमंत्री ने उनसे कहा- आप मेरी बहन जैसी हैं अ©र हम चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करने के लिए आप संप्रग सरकार के प्रति सकारात्मक सहयोग दें। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री की इस बात को आज हुई कार्यकारिणी की बैठक में रखा गया अ©र संप्रग सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन देने का निर्णय किया गया। मायावती ने कहा कि हमारा समर्थन संप्रग सरकार को इसलिए भी है क्योंकि केन्द्र की सत्ता से साम्प्रदायिक शक्तियों को बाहर रखना चाहते हैं। बसपा प्रमुख ने कहा कि हमने तय किया है कि हमारी पार्टी के 21 सांसद संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन देंगे।
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने आज यहां कहा कि बसपा ने कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को बिना शर्त बाहर से समर्थन देने का निर्णय किया है। मायावती ने आज यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आज सुबह हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह तय किया गया है कि जनता के फैसले का सम्मान करते हुए बहुजन समाज पार्टी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन देगी। मायावती ने कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र को अधिकृत किया गया है कि वह समर्थन की चिट्टी ले जाकर राष्ट्रपति अ©र संप्रग अध्यक्ष को सौंपें।
मायावती ने बताया कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में संप्रग सरकार की जीत पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बधाई देने के लिए फोन किया था। मायावती के अनुसार फोन पर प्रधानमंत्री ने उनसे कहा- आप मेरी बहन जैसी हैं अ©र हम चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करने के लिए आप संप्रग सरकार के प्रति सकारात्मक सहयोग दें। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री की इस बात को आज हुई कार्यकारिणी की बैठक में रखा गया अ©र संप्रग सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन देने का निर्णय किया गया। मायावती ने कहा कि हमारा समर्थन संप्रग सरकार को इसलिए भी है क्योंकि केन्द्र की सत्ता से साम्प्रदायिक शक्तियों को बाहर रखना चाहते हैं। बसपा प्रमुख ने कहा कि हमने तय किया है कि हमारी पार्टी के 21 सांसद संप्रग सरकार को बाहर से समर्थन देंगे।
اسلام اور شرک دو ایسی چیزیں ہیں جن میں کبھی اتحاد اور بقائے باہم کی فضا نہیں بن سکتی ۔دونوں فطرتاایک دوسرے کی ضد ہیں جن میں کشمکش ناگزیر ہے۔6/دسمبر 1992کی تاریخ اسی کشمکش کے تسلسل کی ایک کڑی ہے۔یہ وہ دن ہے کہ جب ہندو انتہا پسندوں نے حکومت اور سرکاری مشینری کی سرپرستی اور نگرانی میں دن کی روشنی میں پانچ سو سالہ قدیم بابری مسجد کوشہید کرڈالا تھا۔آزادی کے بعد ہندوستان کے مسلمانوں کیلئے یہ سب سے بدنما داغ ہے جسے اہل اسلام کبھی فراموش نہیں کرسکتے۔ہندوستان کے طول وعرض میںیہ سازشیں ایک مکمل منصوبہ اور حکمت عملی کا نتیجہ ہیںجن کو اسلام دشمن طاقتوں نے بڑی باریک بینی سے بنایا ہے اور اب اس پر پورے عزم وجزم کے ساتھ عمل پیرا ہیں ۔ہندوستان کے مسلمان اس نام نہاد آزادی کے ان 61سالوں میں تقریباََ30ہزار سے زائد مسلم کش فسادات کی آگ جھیل چکے ہیں۔ان کو سماجی ،اقتصادی،اور سیاسی ہر طرح سے ختم کرنے کی کوشش کی جا چکی ہے ۔ایک طرف سے یہ کوششیںتو دوسری طرف سے بے بنیاد پروپیگنڈہ اہل باطل مسلمانوں کی صفوں میں دراڑ ڈالنے کیلئے ہمیشہ کرتے آرہے ہیں ۔عام مسلمانوں کے ذہنوں میں یہ بات ڈالنے کی کوشش کی جارہی ہے کہ بابری مسجد کا ایشو صرف ایک مسجد کا معاملہ ہے اس کیلئے پریشان ہونے کی چنداںضرورت نہیںاور اب تو اس پر خواص میں سے بھی بعض لوگ ایمان لاتے نظر آنے لگے ہیں ۔جب کہ اسلام میں مساجد کافی اہمیت کی حامل ہیں انہیں بیت اللہ (اللہ کا گھر)کہا گیا ہے ۔بابری مسجد ہندوستان میں دراصل اسلام اور شرک کی کشمکش کا ایک عنوان ہے اور ہندو احیاء پرست تحریکیں رام مندرکی تعمیر کو بھارت کے ہندوراشٹر بنانے کے عمل میں سنگ میل قرار دیتی ہیں۔اس پورے معاملے کو سمجھنے کیلئے ہمیں ان باتوں کو سامنے رکھنا ہوگا۔
وہ مذاہب جو دنیا کو ایک مکمل نظام حیات دینے کے دعویدار ہیں ،تین ہیں۔١۔یہودیت،٢۔عیسائی،٣۔اسلام
کوئی مذہب اس وقت تک نہ تو دنیا کو مکمل نظام حیات دے سکتا ہے اور نہ ہی اس کا دعویدار ہو سکتا ہے جب تک کہ اس کے پاس یہ تین چیزیںنہ ہوں
(١)ایک ایسی شخصیت جو پوری قوم کے نزدیک مذہبی شخصیت ہو اور اس کی پیروی فرض قرار پائے ۔
(٢)ایک ایسی کتاب جو جملہ امور میں رہنمائی کرسکے اور اس کی حیثیت بنیادی مأخذ کی ہو ۔
(٣)ایک ایسا مرکز جس سے وہ قوم اپنے روحانی اور مذہبی جذبات وابستہ رکھ سکے۔
یہود کے پاس یہ تینوں چیزیں ،حضرت موسیٰ ،توریت اور ھیکل سلیمانی کی شکل میں موجود ہیں۔عیسائیت کے پاس بھی حضرت عیسی ،انجیل اور ویٹکن سٹی کی شکل میں یہ تینوں چیزیں موجود ہیں۔اسلام میں بھی حضرت محمد ۖ ،قرآن اور خانہ کعبہ کی شکل میں موجود ہے ۔ہندو ازم ایک ایسا مذہب ہے جس کی تاریخ بھی ڈھنگ سے مدون نہیں ہے لیکن اب یہ بھی دنیا کو ایک نظام حیات دینے کا دعویدار ہوگیا ہے جب کہ مذکورہ تینوں چیزوں میں سے ایک بھی اس کے پاس متفق علیہ نہیں ہے۔دیومالائی کہانیوں پر مشتمل مذہبی کتابیں دن بہ دن خود ہندو اسکالر کے نزدیک اپنا مقام کھوتی جارہی ہیںاور وہ تعداد میں کئی ایک ہونے کے سبب نزاعی شکل اختیار کرتی جارہی ہیں۔مذہبی کتابوںمیں ''ویداز،رامائن ،بھگوت گیتا،مہابھارت اور پران بطور خاص قابل ذکر ہیں ۔ہر ایک کتاب کو ماننے والا دوسری کتاب پر اس کو فوقیت دیتا ہے ۔کوئی صرف ویداز کو مذہبی کتاب مانتا ہے تو کوئی رامائن کے تقدس کا دم بھرتا ہے ،کوئی گیتا ہی میں اپنے نجات کی راہ ڈونڈھتا ہے ،اسی طرح خداؤں کا معاملہ بھی ہے۔کوئی رام سے آس لگائے بیٹھا ہے ،کوئی کنکر کنکر میں شنکر کا رآگ الاپ رہا ہے ،کوئی لچھمن کی برتری کا قائل ہے ،یہاں تک کہ ہندوستان کے ایک کونے میں راون کی پوجا ہوتی ہے تو دوسرے کونے میںاسے راکشش بتا کر جلا دیا جاتاہے ۔تیسری چیز جو ضروری ہے وہ ایک مرکز یا سینٹرہے،اور وہ بھی یہاں مفقود ہے جو کچھ مذہبی مقامات کے نام پر جگہیں ہیں وہ شدید اختلافات کی نظر ہیں ۔رام کی جس بستی کا ذکر رامائن کے اشلوکوں میں ہے اس کی تفصیل موجودہ اجودھیا سے کسی طرح میل نہیں کھاتی ہے۔مذہبی مقامات میں کاشی ،متھرا،ایودھیا،کانچی پورم وغیرہ کا نام لیا جاتا ہے لیکن ان میں اختلاف کے سبب پوری قوم کسی بھی ایک مقام کو متفقہ طور پر تسلیم کرنے کو تیار نہیں ہے۔
مذہبی کتاب ،شخصیت اور مرکز پر اتفاق کیلئے ہندوستان کے برہمنوں نے ایک طویل جدوجہد کی اور پوری قوم کوا یک پلیٹ فارم پر لانے کی بھر پور کوشش کی اور یہ کوشش ہنوز جاری ہے۔اسّی کی دہائی میں ''رامائن کا ایک سین ''کے نام سے ایک ٹی وی سیریل شروع کیا گیا اور اس کے لئے بے پناہ پرو پیگنڈہ کیا گیا ۔اس وقت ٹی وی اتنا عام نہیں تھا ۔بڑے بڑے شہروں میں سیریل کا وقت ہونے پر لوگ کام کاج چھوڑ کرسیریل دیکھنے کیلئے جمع ہوجاتے اور یہ سلسلہ ایک لمبے عرصے تک چلاجس سے ہندو قوم کے جذبات کو دوسری مذہبی کتابوں سے ہٹاکر رامائن سے جوڑ دیا گیا اور رامائن سے جذبات وابستہ کرنے کا نتیجہ رام کی بے پناہ مقبولیت کی شکل میں ظاہر ہوا ۔بظاہر یہ منصوبہ بہت کامیاب رہا لیکن معاملہ صرف اتنا ہی نہیں ہے ۔رام کی شخصیت اور رامائن خود اتنے مختلف فیہ ہیں کہ ان کا ازالہ کافی مشکل ہے ۔ہندوستانی زبانوں میں سنسکرت سے لیکر ہندی ،تیلگو ،ملیالم،کنڑا،تمل بنگالی اورمراٹھی وغیرہ زبانوں میں رامائن لکھی گئی ہے ۔اس میںنہ صرف یہ کہ زمان ومکان کا بعد ہے بلکہ ایک ہی کردار کے بارے میں اتنے شکوک وشبہات ہیں کہ سب ایک دوسرے سے جدا نظر آتے ہیں ۔مثلا رام کو کہیں دشرتھ کا بیٹا کہیں پوتا ،کہیں وشنو کے فوجی کمانڈر کابیٹا بتایا گیا ہے ۔دشرتھ کی بیویوں کی تعداد میں عجیب مضحکہ خیزی نظر آتی ہے ۔مختلف رامائنوں میں دشرتھ کی بیویوں کی تعداد ایک سے شروع ہوکر 750 ،اور1600 تک بتائی گئی ہے ۔راجہ دشرتھ کو کہیں بنارس ،کہیں اجودھیا تو کہیں جمبودیپ کا راجہ بتایا گیا ہے ۔رام کی شخصیت اور تعلیمات کے بارے میں کوئی ٹھوس ثبوت نہیں ملتا ۔رامائن کے مختلف مصنفین کے پاس رام کو جاننے کا کیا ذریعہ رہا ہے تاریخ اس بات میں بھی خاموش ہے ۔لیکن پھر بھی آج ہندوستان میں ہندوؤ ں کا ایک بڑا طبقہ رام راج کے نعرے کی گونج میں مست ہوکر رام کی مکمل پیروی کا عہد کر چکا ہے ۔لیکن مطلع ابھی بھی صاف نہیں ہے مذہبی مقدس سرزمین کے بارے میں ابھی بھی بہت کچھ رد وکد باقی ہے ۔سنگھ پریوار اور اس کی حامی تنظیموں نے پورے پچاس سال پوری ہندو قوم کے جذبات کو اجودھیا سے وابستہ کرنے کیلئے لگادئے ۔لاکھوں مسلمان اس مہم کی بھینٹ چڑھ گئے ۔اس مہم کو رفتہ رفتہ ایک منظم منصوبہ بندی کے تحت مختلف مراحل سے گزارا گیا تا کہ ایک طرف مسلمانوں کی غیرت وحمیت اتنی نہ بڑھے کہ یہ منصوبے ناکام ہوتے نظر آئیں تو دوسری طرف پوری ہندو قوم دھیمے دھیمے اس شہر اور اس جگہ کو اپنا مقدس مرکز رتسلیم کرلے اور اس کیلئے سر دھڑ کی بازی لگا دینے کیلئے تیار ہو جائے ۔اس کیلئے بی جے پی ایک طرف سیاسی طور سے فضا کو ہموار کررہی ہے تودوسری طرف آر ایس ایس نے فکری در اندازی کا بیڑہ اٹھا رکھا ہے ۔/6 دسمبر1992کو بابری مسجد کی شہادت کے بعد رام مندر کی تعمیر میں تأخیر پر اب بعض ہندو دانشور بھی انگلیاں اٹھا رہے ہیں ۔
بعض تجزیوں کے مطابق رام مندر کی تعمیر کو صرف اس لئے مؤخر کیی گیا کہ ذہن سازی کے کام میں جو کمی اور کوتاہی رہ گئی ہے وہ پوری ہو اور اس ایشو کے ذریعے بی جے پی کوہندواکثریت کا فائدہ اٹھاتے ہوئے بار بار اقتدار میں آنے کا موقع ملتا رہے ۔اس پورے ہنگامے میں نام نہاد غیر جانبدارقومی میڈیا نے بھی بہت گل کھلائے ہیں۔مسلسل ایسے مضامین اور تجزیوں کو شائع کرناجن سے مسلمانوں کے جذبات مجروح ہوں اور بھگواوادی لوگ سکون کی ٹھنڈی سانس لے سکیں ،اس کا خاص مشغلہ رہا ہے ۔اس کے علاوہ عدالت کے فیصلے میں غیر معمولی تأخیر میں چاہے کسی کو کتنا فائدہ نظر آئے لیکن یہ بات ضرور اہم ہے اس مسئلہ کو مکمل ایشو بنانے میںاس عدالتی تأخیر کے رول سے انکار نہیں کیا جاسکتا ۔ہندوستان کے مسلمانوں کو اپنے سامنے یہ بات اچھی طرح رکھنی ہوگی کہ یہ معاملہ صرف ایک مسجد کا معاملہ نہیں ہے ،گو کہ وہ بھی قابل توجہ ہے،بلکہ ہندوستان کے طول وعرض میں اسلام اور شرک کے وجودو بقا کی جدوجہد اورکشمکش کا ایک عنوان ہے۔
آر ایس ایس کے افرادوقتا فوقتا یہ کہتے نظر آتے ہیں کہ رام مندر کی تعمیر ہندو راشٹر کے قیام کی پہلی منزل ہے اگر رام مندر بن گیا تو ہندو راشٹر کو قائم کرنے میں کوئی قوت مزاحم نہیں ہوسکتی ۔نیز یہی مذکورہ چیزیں کسی قوم وملت کی عزت وآبرو ہوا کرتی ہیںاگر گر وہ محفوظ نہین ہیں تو اس قوم اور ملت کا وجود خطرے میں ہے ۔اور اس کے تحفظ کی جدوجہد سے اپنے آپ کو پیچھے کر لینا اس ملت کیلئے اپنی موت کا سامان آپ کرنے کے مترادف ہے ۔مساجد کی شہادت یا ان پر پابندی ،قرآن سوزی کے واقعات اور رسول اللہ ۖ کی شان میں گستاخی ،کسی بھی چیز سے ہندوستانی مسلمان بچے نہیں ہیں ۔آزادی کے ان 61سالوں میں مسلمانوں کے اندر ایک عدم تحفظ کا احساس جاگزیں رہا ہے۔اور یہ احساس دن بہ دن بڑھتاہی جارہا ہے ۔آنے والے ایام میں عدم تحفظ کے اس احساس سے مسلمانوں کو تو نقصان پہنچے گا لیکن ملک کی سالمیت کیلئے یہ کہیں زیادہ نقصاندہ ثابت ہوگا۔کیا اہل سیاست ہوش کے ناخن لیں گے؟
وہ مذاہب جو دنیا کو ایک مکمل نظام حیات دینے کے دعویدار ہیں ،تین ہیں۔١۔یہودیت،٢۔عیسائی،٣۔اسلام
کوئی مذہب اس وقت تک نہ تو دنیا کو مکمل نظام حیات دے سکتا ہے اور نہ ہی اس کا دعویدار ہو سکتا ہے جب تک کہ اس کے پاس یہ تین چیزیںنہ ہوں
(١)ایک ایسی شخصیت جو پوری قوم کے نزدیک مذہبی شخصیت ہو اور اس کی پیروی فرض قرار پائے ۔
(٢)ایک ایسی کتاب جو جملہ امور میں رہنمائی کرسکے اور اس کی حیثیت بنیادی مأخذ کی ہو ۔
(٣)ایک ایسا مرکز جس سے وہ قوم اپنے روحانی اور مذہبی جذبات وابستہ رکھ سکے۔
یہود کے پاس یہ تینوں چیزیں ،حضرت موسیٰ ،توریت اور ھیکل سلیمانی کی شکل میں موجود ہیں۔عیسائیت کے پاس بھی حضرت عیسی ،انجیل اور ویٹکن سٹی کی شکل میں یہ تینوں چیزیں موجود ہیں۔اسلام میں بھی حضرت محمد ۖ ،قرآن اور خانہ کعبہ کی شکل میں موجود ہے ۔ہندو ازم ایک ایسا مذہب ہے جس کی تاریخ بھی ڈھنگ سے مدون نہیں ہے لیکن اب یہ بھی دنیا کو ایک نظام حیات دینے کا دعویدار ہوگیا ہے جب کہ مذکورہ تینوں چیزوں میں سے ایک بھی اس کے پاس متفق علیہ نہیں ہے۔دیومالائی کہانیوں پر مشتمل مذہبی کتابیں دن بہ دن خود ہندو اسکالر کے نزدیک اپنا مقام کھوتی جارہی ہیںاور وہ تعداد میں کئی ایک ہونے کے سبب نزاعی شکل اختیار کرتی جارہی ہیں۔مذہبی کتابوںمیں ''ویداز،رامائن ،بھگوت گیتا،مہابھارت اور پران بطور خاص قابل ذکر ہیں ۔ہر ایک کتاب کو ماننے والا دوسری کتاب پر اس کو فوقیت دیتا ہے ۔کوئی صرف ویداز کو مذہبی کتاب مانتا ہے تو کوئی رامائن کے تقدس کا دم بھرتا ہے ،کوئی گیتا ہی میں اپنے نجات کی راہ ڈونڈھتا ہے ،اسی طرح خداؤں کا معاملہ بھی ہے۔کوئی رام سے آس لگائے بیٹھا ہے ،کوئی کنکر کنکر میں شنکر کا رآگ الاپ رہا ہے ،کوئی لچھمن کی برتری کا قائل ہے ،یہاں تک کہ ہندوستان کے ایک کونے میں راون کی پوجا ہوتی ہے تو دوسرے کونے میںاسے راکشش بتا کر جلا دیا جاتاہے ۔تیسری چیز جو ضروری ہے وہ ایک مرکز یا سینٹرہے،اور وہ بھی یہاں مفقود ہے جو کچھ مذہبی مقامات کے نام پر جگہیں ہیں وہ شدید اختلافات کی نظر ہیں ۔رام کی جس بستی کا ذکر رامائن کے اشلوکوں میں ہے اس کی تفصیل موجودہ اجودھیا سے کسی طرح میل نہیں کھاتی ہے۔مذہبی مقامات میں کاشی ،متھرا،ایودھیا،کانچی پورم وغیرہ کا نام لیا جاتا ہے لیکن ان میں اختلاف کے سبب پوری قوم کسی بھی ایک مقام کو متفقہ طور پر تسلیم کرنے کو تیار نہیں ہے۔
مذہبی کتاب ،شخصیت اور مرکز پر اتفاق کیلئے ہندوستان کے برہمنوں نے ایک طویل جدوجہد کی اور پوری قوم کوا یک پلیٹ فارم پر لانے کی بھر پور کوشش کی اور یہ کوشش ہنوز جاری ہے۔اسّی کی دہائی میں ''رامائن کا ایک سین ''کے نام سے ایک ٹی وی سیریل شروع کیا گیا اور اس کے لئے بے پناہ پرو پیگنڈہ کیا گیا ۔اس وقت ٹی وی اتنا عام نہیں تھا ۔بڑے بڑے شہروں میں سیریل کا وقت ہونے پر لوگ کام کاج چھوڑ کرسیریل دیکھنے کیلئے جمع ہوجاتے اور یہ سلسلہ ایک لمبے عرصے تک چلاجس سے ہندو قوم کے جذبات کو دوسری مذہبی کتابوں سے ہٹاکر رامائن سے جوڑ دیا گیا اور رامائن سے جذبات وابستہ کرنے کا نتیجہ رام کی بے پناہ مقبولیت کی شکل میں ظاہر ہوا ۔بظاہر یہ منصوبہ بہت کامیاب رہا لیکن معاملہ صرف اتنا ہی نہیں ہے ۔رام کی شخصیت اور رامائن خود اتنے مختلف فیہ ہیں کہ ان کا ازالہ کافی مشکل ہے ۔ہندوستانی زبانوں میں سنسکرت سے لیکر ہندی ،تیلگو ،ملیالم،کنڑا،تمل بنگالی اورمراٹھی وغیرہ زبانوں میں رامائن لکھی گئی ہے ۔اس میںنہ صرف یہ کہ زمان ومکان کا بعد ہے بلکہ ایک ہی کردار کے بارے میں اتنے شکوک وشبہات ہیں کہ سب ایک دوسرے سے جدا نظر آتے ہیں ۔مثلا رام کو کہیں دشرتھ کا بیٹا کہیں پوتا ،کہیں وشنو کے فوجی کمانڈر کابیٹا بتایا گیا ہے ۔دشرتھ کی بیویوں کی تعداد میں عجیب مضحکہ خیزی نظر آتی ہے ۔مختلف رامائنوں میں دشرتھ کی بیویوں کی تعداد ایک سے شروع ہوکر 750 ،اور1600 تک بتائی گئی ہے ۔راجہ دشرتھ کو کہیں بنارس ،کہیں اجودھیا تو کہیں جمبودیپ کا راجہ بتایا گیا ہے ۔رام کی شخصیت اور تعلیمات کے بارے میں کوئی ٹھوس ثبوت نہیں ملتا ۔رامائن کے مختلف مصنفین کے پاس رام کو جاننے کا کیا ذریعہ رہا ہے تاریخ اس بات میں بھی خاموش ہے ۔لیکن پھر بھی آج ہندوستان میں ہندوؤ ں کا ایک بڑا طبقہ رام راج کے نعرے کی گونج میں مست ہوکر رام کی مکمل پیروی کا عہد کر چکا ہے ۔لیکن مطلع ابھی بھی صاف نہیں ہے مذہبی مقدس سرزمین کے بارے میں ابھی بھی بہت کچھ رد وکد باقی ہے ۔سنگھ پریوار اور اس کی حامی تنظیموں نے پورے پچاس سال پوری ہندو قوم کے جذبات کو اجودھیا سے وابستہ کرنے کیلئے لگادئے ۔لاکھوں مسلمان اس مہم کی بھینٹ چڑھ گئے ۔اس مہم کو رفتہ رفتہ ایک منظم منصوبہ بندی کے تحت مختلف مراحل سے گزارا گیا تا کہ ایک طرف مسلمانوں کی غیرت وحمیت اتنی نہ بڑھے کہ یہ منصوبے ناکام ہوتے نظر آئیں تو دوسری طرف پوری ہندو قوم دھیمے دھیمے اس شہر اور اس جگہ کو اپنا مقدس مرکز رتسلیم کرلے اور اس کیلئے سر دھڑ کی بازی لگا دینے کیلئے تیار ہو جائے ۔اس کیلئے بی جے پی ایک طرف سیاسی طور سے فضا کو ہموار کررہی ہے تودوسری طرف آر ایس ایس نے فکری در اندازی کا بیڑہ اٹھا رکھا ہے ۔/6 دسمبر1992کو بابری مسجد کی شہادت کے بعد رام مندر کی تعمیر میں تأخیر پر اب بعض ہندو دانشور بھی انگلیاں اٹھا رہے ہیں ۔
بعض تجزیوں کے مطابق رام مندر کی تعمیر کو صرف اس لئے مؤخر کیی گیا کہ ذہن سازی کے کام میں جو کمی اور کوتاہی رہ گئی ہے وہ پوری ہو اور اس ایشو کے ذریعے بی جے پی کوہندواکثریت کا فائدہ اٹھاتے ہوئے بار بار اقتدار میں آنے کا موقع ملتا رہے ۔اس پورے ہنگامے میں نام نہاد غیر جانبدارقومی میڈیا نے بھی بہت گل کھلائے ہیں۔مسلسل ایسے مضامین اور تجزیوں کو شائع کرناجن سے مسلمانوں کے جذبات مجروح ہوں اور بھگواوادی لوگ سکون کی ٹھنڈی سانس لے سکیں ،اس کا خاص مشغلہ رہا ہے ۔اس کے علاوہ عدالت کے فیصلے میں غیر معمولی تأخیر میں چاہے کسی کو کتنا فائدہ نظر آئے لیکن یہ بات ضرور اہم ہے اس مسئلہ کو مکمل ایشو بنانے میںاس عدالتی تأخیر کے رول سے انکار نہیں کیا جاسکتا ۔ہندوستان کے مسلمانوں کو اپنے سامنے یہ بات اچھی طرح رکھنی ہوگی کہ یہ معاملہ صرف ایک مسجد کا معاملہ نہیں ہے ،گو کہ وہ بھی قابل توجہ ہے،بلکہ ہندوستان کے طول وعرض میں اسلام اور شرک کے وجودو بقا کی جدوجہد اورکشمکش کا ایک عنوان ہے۔
آر ایس ایس کے افرادوقتا فوقتا یہ کہتے نظر آتے ہیں کہ رام مندر کی تعمیر ہندو راشٹر کے قیام کی پہلی منزل ہے اگر رام مندر بن گیا تو ہندو راشٹر کو قائم کرنے میں کوئی قوت مزاحم نہیں ہوسکتی ۔نیز یہی مذکورہ چیزیں کسی قوم وملت کی عزت وآبرو ہوا کرتی ہیںاگر گر وہ محفوظ نہین ہیں تو اس قوم اور ملت کا وجود خطرے میں ہے ۔اور اس کے تحفظ کی جدوجہد سے اپنے آپ کو پیچھے کر لینا اس ملت کیلئے اپنی موت کا سامان آپ کرنے کے مترادف ہے ۔مساجد کی شہادت یا ان پر پابندی ،قرآن سوزی کے واقعات اور رسول اللہ ۖ کی شان میں گستاخی ،کسی بھی چیز سے ہندوستانی مسلمان بچے نہیں ہیں ۔آزادی کے ان 61سالوں میں مسلمانوں کے اندر ایک عدم تحفظ کا احساس جاگزیں رہا ہے۔اور یہ احساس دن بہ دن بڑھتاہی جارہا ہے ۔آنے والے ایام میں عدم تحفظ کے اس احساس سے مسلمانوں کو تو نقصان پہنچے گا لیکن ملک کی سالمیت کیلئے یہ کہیں زیادہ نقصاندہ ثابت ہوگا۔کیا اہل سیاست ہوش کے ناخن لیں گے؟
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