इस दौरे में हिलेरी पाकिस्तान नहीं जा रही हैं। यह अच्छा संकेत है कि अमेरिका अब भारत और पाक को एक ही तराजू में तौलने से बच रहा है।
जॉ र्ज डब्ल्यू बुश के राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम सालों से पहले भारत और अमेरिका के संबंध कभी गर्मजोशी भरे नहीं रहे। तब दोस्त हम थे नहीं, परिचित थे बस। हालांकि भारत से बाहर जाकर बसने वालों के लिए अमेरिका पहली पसंद रहा और जब रिश्तों में नजदीकियां आईं तो इन अप्रवासी भारतीयों का बड़ा योगदान रहा।
यही कारण है कि आज जब हिलेरी क्लिंटन यहां हैं तो वह कहना नहीं भूलतीं कि भारत से उनके लगाव में निजी संबंधों का बड़ा हाथ है। डेमोक्रेट चुनाव में भारतीयों ने इनका बहुत साथ दिया। हालांकि वह बराक ओबामा से पराजित हो गईं।
ओबामा के शपथग्रहण के ठीक बाद लगा कि भारत-अमेरिका संबंधों को ग्रहण सा लगने वाला है। ओबामा जिस तरह बुश की नीतियों को पलट रहे थे और अमेरिका के लिए एक नई राह की परिकल्पना कर रहे थे, उससे भारत में निराशा थी। विदेश मंत्री हिलेरी का भारत आना इसलिए महत्वपूर्ण था कि ओबामा प्रशासन यह स्पष्ट करे कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र के आपसी संबंधों का स्वरूप क्या होगा। अब यह लगभग स्पष्ट हो गया है।
ओबामा आदर्शवादी हैं पर व्यावहारिक भी हैं। बुशकालीन नीतियां जो अमेरिका के हित में हैं, जारी रहेंगी। परमाणु ऊर्जा समझौता हो या सामरिक सहयोग, भारत और अमेरिका अब ज्यादा करीब होंगे। आतंकवाद से लड़ाई में अमेरिका अब भी पाकिस्तान की तरफ देखता है, पर उसे यह अहसास हो गया है कि भारत के साथ सकारात्मक सहयोग किए बिना पाकिस्तान पर दबाव नहीं बनाया जा सकता।
भारत की आर्थिक शक्ति ही चीन के बढ़ते प्रभाव की काट है और आने वाले वर्षो में बिना भारत को साथ लिए ऊर्जा, पर्यावरण और सुरक्षा के क्षेत्र में पूरे विश्व के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना नहीं किया जा सकता।
इस दौरे की सबसे बड़ी बात यह है कि क्लिंटन पाकिस्तान नहीं जा रहीं। ऐसा विरले ही होता है क्योंकि पश्चिम और खासकर अमेरिका व ब्रिटेन, भारत और पाकिस्तान को एक तराजू में तौलते आए हैं और उसी समता को बनाए रखने के लिए कोई भी प्रतिनिधि दोनों देशों का दौरा किए बिना नहीं लौटता।
यह अच्छा संकेत है कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान के हाइफन को हटा रहा है। अब एक नया हाइफन बना है अफ-पाक। भारत व अमेरिका के संबंधों का भारत-पाक या पाक-अमेरिका संबंधों के बंधनों से मुक्त होना बहुत जरूरी है। बेड़ियों में कदम दर कदम चलना संभव है, दशकों की दूरियों को लांघना संभव नहीं।