ढूंढ़ते रह जाओगे राहुल की रणनीति!
ठहत्तर-सदस्यीय मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल के सदस्यों के बीच किए गए विभागों के बंटवारे की इस खूबी की दाद दी जानी चाहिए कि इसमें जहां पुरानों को उनकी पिछले पांच सालों के दौरान की गई सेवा के लिए इज्जत के साथ पुरस्कृत किया गया है, नौजवानों को विभाग केवल आंखों में सुरमा लगाकर घूमने की नीयत से ही नहीं बांटे गए हैं। बंटवारे में की गई मेहनत इस बात से नजर आती है कि यूपीए के सहयोगी दलों - तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और द्रमुक - को उनकी देश को जरूरत और गठबंधन में उनकी हैसियत के हिसाब से ही तोहफे थमाए गए हैं।सरकार को आने वाले पांच सालों में कुछ काम करके दिखाना है और पिछले कार्यकाल में मजबूरीवश हुई गलतियों पर रंग-रौगन भी करना है, इसी लिहाज से अधिकतर महत्वपूर्ण विभाग अनुभवी कांग्रेसी मंत्रियों के हवाले किए गए हैं।
आने वाले जमाने में भूतल परिवहन और राष्ट्रीय राजमार्ग पर जिस तरह का काम किया जाना है इसका इशारा भी कर दिया गया है। द्रमुक के चर्चित मंत्री टी.आर. बालू के नेतृत्व में पिछले कार्यकाल में हुई दुर्घटनाओं को दुरुस्त करने के लिए यह विभाग इस बार कमलनाथ को सौंप दिया गया है।ए. राजा (द्रमुक) को दबावों के चलते संचार और आई.टी. फिर से दे तो दिया गया है पर उनके साथ सचिन पायलट को नत्थी कर दिया गया है। इसी प्रकार करुणानिधि के साहबजादे एम. के अड़गिरि को रसायन और उर्वरक के साथ काबीना मंत्री बनाया गया है पर उनके पीछे श्रीकांत जेना को लगा दिया गया है। अति महत्वपूर्ण विभागों के बंटवारे में भी टीमें इस प्रकार बनाई गई है कि काबीना मंत्री अपने युवा साथी के साथ मिल-जुलकर काम कर सकें।
मसलन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के साथ पदोन्नत होने वाले आनंद शर्मा के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुरली देवड़ा (पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस) के साथ जितिन प्रसाद, विलासराव देशमुख (भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम) के साथ प्रतीक पाटिल और एस.एम. कृष्णा (विदेश मंत्रालय) के साथ शशि थरूर और परणीत कौर को जोड़ा गया है। कपिल सिब्बल (मानव संसाधन), गुलाम नबी आजाद (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण), अंबिका सोनी (सूचना एवं प्रसारण) को महत्वपूर्ण विभाग देकर सरकार में उनके महत्व को बढ़ाया गया है। पिछली सरकार के कई काबीना मंत्रियों के विभागों में कोई परिवर्तन नहीं करना भी सरकार के इरादों को ही जाहिर करता है। बंटवारों की विशेषता यह भी है कि वफादारी को पुरस्कृत करने के साथ-साथ युवा चेहरों पर भी मुस्कान लाने की पूरी कोशिश की गई है। नए मंत्रिमंडल को ठीक से समझने के लिए उन नामों का स्मरण किया जा सकता है जिनकी फिल्में पीछे के पांच सालों में घटी दरों पर चलती भी रहीं और दर्शक मजबूरी में देखते भी रहे। मंत्रिमंडल के गठन में हुई देरी और फिर विभागों के बंटवारे में हुए विलंब के लिए डॉ. मनमोहन सिंह को केवल इसलिए माफ कर देना चाहिए कि पंद्रहवीं लोकसभा के नेतृत्व के लिए बनी सरकार का लक्ष्य केवल अगले पांच साल का कामकाज ही ठीक से निपटाना नहीं है। निशाने पर वे कार्यकाल हैं जिनका शुरू होना भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। विपक्षी दलों के लिए भी संकेत यही है कि वे भी अपनी नीतियों को उसी हिसाब से अंजाम दें।
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