Nov 10, 11:36 am
मधुबनी [श्यामानंद मिश्र]। पिछड़ेपन का सटीक नमूना है पंडौल प्रखंड की बेलाही पंचायत का यह कमलाबाड़ी धांगड़ टोला। यहां है अभाव, कुपोषण और बीमारियों का बोलबाला। इस गरीब बस्ती में पिछले दो वर्षो के भीतर दर्जनों लोग बीमारियों की चपेट में असामयिक काल-कवलित हो चुके हैं तो कई दर्जन काल के गाल में समाने का दिन गिन रहे हैं। यहां के लगभग सभी बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। सरकार के हर दावे को इस टोले की आर्थिक विपन्नता खोखला साबित कर रही है। तकरीबन साल भर पहले दैनिक जागरण में बस्ती की दयनीय दशा उजागर करती विस्तृत रपट प्रकाशित हुई थी, जिसके बाद कुछ दिनों के लिए प्रशासनिक महकमे में सुधार की सुगबुगाहट तो हुई, मगर फिर सब कुछ जैसे का तैसा हो गया। करीबन 100 वर्ष पूर्व दरभंगा महाराज के आग्रह पर धांगड़ जाति के लोग दक्षिण बिहार से यहां आकर बसे थे। आदिवासी मूल के इन लोगों का तब मूल काम शिकारमाही था। दरभंगा राज के समय में तो इन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई, लेकिन बाद के दशकों में इनके ऊपर एक के बाद एक संकट मंडराने लगा। अभी हाल यह है कि तकरीबन 150 घरों की बस्ती में किसी के पास टूटी-फूटी झोपड़ी के सिवाय कुछ नहीं है। गांव के लोग बताते हैं कि एक दशक पूर्व इंदिरा आवास योजना के तहत इन्हें घर मुहैया कराए गए थे, जो अब जर्जर हो चुके हैं। गांव में एक सरकारी दालान तो जरूर है, लेकिन हजारों की आबादी के बावजूद यहां एक भी स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। आर्थिक विपन्नता के कारण बस्ती के 80 प्रतिशत स्त्री-पुरुष व बच्चे विभिन्न रोगों से ग्रसित हैं। धांगड़ मांझी टोला में प्रवेश करते ही कुछ अलग सत्य के ही दर्शन होते हैं। बस्ती के लोग स्थानीय मुखिया व जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ आला अधिकारियों से नाराज दिखते हैं। पिछले दो वर्ष के भीतर विभिन्न बीमारियों से मरने वालों में मंगली देवी, अमृत देवी, भोली मांझी, रामकिशुन मांझी, मंगला मांझी, खुशबू, मरछिया देवी आदि नाम शामिल हैं। फिलहाल तीन बच्चों की मां व गर्भवती बासो देवी बीमार है और मौत के दिन गिन रही है। योगेन्द्र माझी और उनके जैसे दर्जनों अन्य के पास रोजगार का कोई साधन नहीं है। बुधन मांझी व उनकी पत्नी मंजू के मर जाने के बाद उनका अनाथ बच्चा भगवान भरोसे है। रधिया, आरती, कालो, मरनी, भुनेश्वर, वीणा, शांति विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे हैं। सरकारी योजनाओं से उनका विश्वास उठ चुका है।
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