Friday, November 20, 2009

यूपीए झारखंड में क्यों असफल हुआ?

स्टेन स्वामी -
कांग्रेस गठबंधन यूपीए, देश के कई भागों में उम्मीद से ज्यादा जीत हासिल किया है। जबकि मास मीडिया में सबसे ज्यादा अनुमान २२५ सीट किया गया था। लेकिनं यूपीए गठबंधन २६२ सीट पर कबिज हुआ। इस जीत में विशेषता यह है कि जहां-जहां भाजपा से संबंधित पार्टियां थीं, वहीं पर यूपीए की अधिक जीत हुई है। इतना कि यूपीए गठबंधन नई सरकार बनाने में और कोई धर्म निरपेक्ष पार्टियों की खोज भी नहीं कर रहा है। जब देश के स्तर पर यूपीए की सफलता इतना सुस्पष्ट है, झारखंड में उसकी हालत उतना ही दयनीय है। २००४ के संसद चुनाव में यूपीए झारखंड के १४ सीटों में से १३ सीटों पर कब्जा किया था। अभी १३ सीट में से सिर्फ तीन सीट ही उनके हाथ में है। इस परिस्थिति को हमें कुछ जांचना चाहिए कि क्यों और कैसे ऐसा हुआ?
कुछ कारण :-
१. सुशासन का अभाव :
गत पांच साल के दौरान झारखंड में तीन सरकारें शासन चलायीं। लेकिन शासन कभी सुशासन नहीं रहा। सुशासन माने यह है कि जो भी पार्टी सरकार बनती है, उसका लक्ष्य यह होना है कि जनता का विकास एवं कल्याण सही रूप में हो। यह सामान्य जानकारी है कि झारखंड सरकार के पास पैसे की कमी तो नहीं है। जहां २७ प्रतिशत आदिवासी एवं १० प्रतिशत दलित वर्ग है, उनके लिए राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार की ओर से काफी राशि उपलब्ध करायी जाती है। सिर्फ उसका सही प्रयोग कर जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निबाहना कोई भी सरकार का जिम्मा बनता है।दुर्भाग्यवश झारखंड के यूपीए सरकार इस राशि का सही उपयोग नहीं की। इससे जनता भी परेशान है। इसलिए जब चुनाव का समय पहुंचा जनता यूपीए को अपनी मत देने से रूक गई।
२. प्रशासन के हर स्तर पर गहरी भ्रष्टाचार :
झारखंड के समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं इस भ्रष्टाचार का विश्लेषण एवं विवरण करते आये हैं। इसके वावजूद झारखंड के यूपीए सरकार इस गंभीर समस्या पर अपना ध्यान कभी नहीं दिया है। हाल ही में झारखंड का उच्च न्यायालय सी।बी।आई। से मांग किया है कि झारखंड सरकार के मंत्रीगण, एम।एल।ए। एवं अधिकारी लोगों के पास कितना अवैध धन जमा हुआ है, उसका खुलासा करें। जब आम आदमी हर कदम पर भ्रष्टाचार का शिकार बनता है, उसका सरकार के प्रति जो भी विश्वास था वह टूट जाता है, और चुनाव के समय ऐसी सरकार को अपनी सहमति देने से हिचकता है।
३. उद्योगपतियों के साथ एवं विस्थापितों के खिलाफ :
हम सब जानते हैं कि झारखंड में भिन्न समस्याओं में से आदिवासी एवं दलित वर्ग का विस्थापन की समस्या एक गभीर मामला है। इस विषय पर यूपीए सरकार एकदम खुली रूप में जिन उद्योगपतियों ने बडे पैमाने पर जमीन अधिग्रहित करना चाहते हैं, उनका पक्ष ले रहा था।इस बात को भी समझा नहीं कि आदिवासी जनता के लिए उनकी अपनी जमीन ही जीवन का स्रोत है और अगर उनकी जमीन उनसे हडपी जाएगी तो उनका अस्तित्व खुद खतरे में आ जाता है। जब आदिवासी जनता अपनी जमीन नहीं देने का निर्णय ली है और उसके तहत कई महत्वपूर्ण विस्थापन के विरोध आंदोलन शुरू हो गए हैं। यूपीए सरकार प्रतिरोध में लगे हुए जनता से बात किए बिना, उनके खिलाफ प्रशासन एवं पुलिस को उकसाया है, जिस कारण पुलिस गोलीकांड और दूसरे प्रकार के प्रताडनाएं, अर्थात् आंदोलनों के नेत्रत्व करने वालों को गिरफतार करना और उनके विरोध झूठे मुकदमा दर्ज करना एक मामूली बात बन गयी है। इस प्रताडना में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं युवा वर्ग। तब समझने की बात है कि क्यों आदिवासी एवं दलित जनता यूपीए को चुनाव में समर्थन नहीं दिया।
४. जनविकास एवं कल्याणकारी परियोजनाओं की अनदेखी :
यूपीए सरकार अपनी पुनर्वास नीति तैयार करने की घोषणा करते आयी है। लेकिन अब तक पुनर्वास नीति न बना है न लागू किया गया है। जो जनता अभी ही विस्थापित हो गई है उनका पुनर्वास की संभवना हट गयी है। दूसरी ओर नरेगा जैसे योजना एकदम गरीब जनता को रोजगार दिलाने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा पहल किया गया है। एंसी योजनाओं को भी झारखंड की यूपीए सरकार अमल कराने में दिलचस्प नहीं दिखायी है। इससे भी ग्रामीण जनता यूपीए सरकार के प्रति निराश हो गई है। इसलिए जब चुनाव का समय आया। यूपीए सरकार के पक्ष में अपना मत डालने से हट गयी।
निष्कर्ष : संक्षेप में बोलने पर, झारखंड में यूपीए सरकार की चुनावी हार इसलिए हुई क्योंकि आम आदमी और उसकी आवश्यकताओं एवं आशाओं से दूर हो गयी। इसके कारण आम आदमी यूपीए को अपना समर्थन देने से इंकार कर दिया। इसके अलावे आम जनता अपनी आंखों से देख रही थी कि किस प्रकार जो एम।एल।ए। एवं मंत्री अपनी संपति को बढाते रहे। एक तरफ गरीब जनता, दूसरी तरफ करोडपति यूपीए के एम।एल।ए। एवं मंत्रीगण। आम जनता के हाथ में एक ही हथियार है, वही चुनाव के समय अपनी पसन्द प्रकट करने की। झारखंडी जनता यूपीए सरकार को नकारने में इस बात को स्पष्ट कर दी है।

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