पंकज कुमार पांडेय
नई दिल्ली. शिक्षा का अधिकार कानून एक अप्रैल से लागू हो गया है, लेकिन इसके अमल का असली इम्तिहान तो अब शुरू होना है। मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को भी इसका अहसास बखूबी है। उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट इसे माना भी है।मानव संसाधन मंत्रालय के तहत एजूकेशन कंसलटेंट्स इंडिया लि. के सर्वेक्षण को नजीर मानें तो देश में 6 से 13 साल के बीच के 81 लाख से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं जो स्कूलों से बाहर हैं। इनमें से 74 फीसदी से अधिक ऐसे हैं जो कभी स्कूल की दहलीज तक नहीं पहुंचे। फिर 25 प्रतिशत से कुछ ज्यादा पढ़ाई बीच में छोड़ देने वालों की कतार में हैं। शिक्षा का अधिकार कानून छह से 14 साल के बच्चों के लिए है। लिहाजा यह तादाद इस आंकड़े से कहीं ज्यादा मानी जा रही है। स्वाभाविक तौर पर इन बच्चों को स्कूल तक लाना सबसे बड़ी चुनौती है। स्कूल तक नहीं पहुंचने वाले बच्चों में सबसे ज्यादा मुस्लिम वर्ग के 7.67 फीसदी हैं, जबकि अनुसूचित जाति वर्ग के 5.96 और जनजाति वर्ग के 5.60 फीसदी बच्चे हैं। प्रधानमंत्री ने भी अपने संबोधन में इस दुखती रग को छुआ। उन्होंने कहा कि इस कानून को अमल में लाते हुए हमें बच्चियों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की जरूरतों पर खास ध्यान देना होगा।इसके अतिरिक्त सेक्स वर्कर्स व विस्थापितों के बच्चों और कामकाजी बच्चों को भी स्कूल तक पहुंचाने में सरकार को काफी मशक्कत करनी होगी। खासतौर पर काम करने के लिए दूसरी जगहों पर गए बच्चों को कैसे समीपवर्ती स्कूल के दायरे में लाया जाएगा, यह स्पष्ट होना बाकी है।सरकार की तमाम रिपोर्टे बताती हैं कि देश में बड़े पैमाने पर गैर प्रशिक्षित शिक्षक काम कर रहे हैं। इन्हें समयबद्ध तरीके से प्रशिक्षित करना और वेतन विसंगतियों को दूर करने की जिम्मेदारी भी सरकार को निभानी होगी। मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि कानून लागू करने के लिए देश में पांच लाख अतिरिक्त शिक्षकों की जरूरत है। इसके अलावा राज्य सरकारों को समीपवर्ती स्कूलों की अवधारणा को अंतिम रूप देना है। केंद्र के मॉडल रूल के मुताबिक, राज्यों में पहली से पांचवीं कक्षा के बच्चों के लिए एक किलोमीटर की दूरी पर स्कूल होना चाहिए। छठी से आठवीं कक्षा के लिए तीन किमी के दायरे में स्कूल बनाना होगा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, आठ फीसदी के करीब आबादी ऐसी है जिसे तीन किमी के भीतर अपर प्राइमरी स्कूल की सुविधा नहीं है।
विभिन्न राज्यों में स्कूल से बाहर बच्चों का प्रतिशत
अरुणाचल प्रदेश: 10.61 फीसदी
राजस्थान: 8.36
उत्तरप्रदेश: 7.60
बिहार: 7.15
उड़ीसा: 7.02
पश्चिम बंगाल: 5.25
दिल्ली: 5
मध्यप्रदेश: 2.62
क्या है शिक्षा का अधिकार कानून (RTE)
Ashish maharishi
नई दिल्ली. एक अप्रैल से देश के 6-14 आयुवर्ग के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देना कानूनी रुप से सरकार के लिए जरुरी हो जाएगा। यह सबकुछ संभव हो रहा है बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार एक्ट-2009 की वजह से। केंद्र सरकार ने इस बिल पर पिछले साल ही अपनी मुहर लगा दी थी और तय किया था कि एक अप्रैल 2010 को इसे पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा।
क्या है खासियत
इस कानून की सबसे बड़ी खासियत यह है कि अब सरकार के लिए उन बच्चों को शिक्षित करना जरूरी हो जाएगा जो 6-14 के आयु वर्ग में आते हैं। यह कानून स्कूलों में शिक्षक और छात्रों के अनुपात को सुधारने की बात करता है। मसलन अभी कई स्कूलों में सौ-सौ बच्चों पर एक ही शिक्षक हैं। लेकिन इस कानून में प्रावधन है कि एक शिक्षक पर 40 से अधिक छात्र नहीं होंगे। हालांकि यह कोठारी आयोग की अनुशंसा 1:30 से कम है। इस कानून के अनुसार राज्य सरकारों को बच्चों की आवश्यकता का ध्यान रखते हुए लाइब्रेरी, क्लासरुम, खेल का मैदान और अन्य जरूरी चीज उपलब्ध कराना होगा। 15 लाख नए शिक्षकों की भर्ती, जिसे एक अक्टूबर तक ट्रेन करना जरूरी है। स्कूल में प्रवेश के लिए मैनेजमेंट बर्थ सर्टिफिकेट फिर ट्रासंफर सर्टिफिकेट आधार पर प्रवेश से मना नहीं कर सकता।
सत्र के दौरान कभी भी प्रवेश
निजी स्कूल में 25 फीसदी सीट गरीब बच्चों के लिए
क्या है खामियां
इस कानून की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें 0-6 आयुवर्ग और 14-18 के आयुवर्ग के बीच के बच्चों की बात नहीं कई गई है। जबकि संविधान के अनुछेच्द 45 में साफ शब्दों में कहा गया है कि संविधान के लागू होने के दस साल के अंदर सरकार 0-14 वर्ग के आयुवर्ग के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा देगी। हालांकि यह आज तक नहीं हो पाया। अंतराष्ट्रीय बाल अधिकार समझौते के अनुसार 18 साल तक की उम्र तक के बच्चों को बच्चा माना गया है। जिसे 142 देशों ने स्वीकार किया है। भारत भी उनमें से एक है। ऐसे में 14-18 आयुवर्ग के बच्चों को शिक्षा की बात इस कानून में नहीं कई गई है।इस कानून को केंद्र सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि में से एक बताया जा रहा है। जबकि संविधान में पहले से ही यह प्रावधान है और 2002 में हुए 86वें संशोधन में भी शिक्षा के अधिकार की बात कई गई थी। लेकिन सरकार अब जाकर यह कानून ला रही है। इन आठ सालों में बच्चों की पूरी एक पीढ़ी इस अधिकार से बाहर हो गई।
इतिहास
संविधान के अनुछेच्द 45 में 0-14 उम्र के बच्चों को शिक्षा देने की बात कही गई। 2002 में 86 वें संशोधन में शिक्षा के अधिकार की बात कही गई। 2009 में शिक्षा का अधिकार बिल पास हो सका, एक अप्रैल 2010 में इसे पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा।
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