अन्ना के अनशन में जितनी नैतिक आभा दिखती थी, रामदेव के अनशन पर बैठने के पहले ही उतनी ही बेशर्म महत्त्वाकांक्षा दिखने लगी है. अन्ना की पूंजी उनका त्याग और सादी जीवन शैली थी, रामदेव की पूंजी सचमुच ग्यारह सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की कूती जाती है. रामदेव ने जिस तरह अन्ना के समांतर और खिलाफ उभरने की तरकीब की है, उसके चलते उनकी तुलना अन्ना के साथ फिलहाल की जाती रहेगी. लोकपाल आंदोलन में एक नैतिक आह्वान था, मगर रामदेव के अनशन में शुरू से तरकीब दिख रही है.
अन्ना बैठे थे जंतर मंतर के लोकतांत्रिक खुलेपन में. रामदेव सुविधा और ऐश्वर्य के इंतजाम में बंद महामंडप में बैठ रहे हैं. इतना बड़ा, भव्य और सुंदर पंडाल शायद किसी आमरण अनशन में कभी नहीं देखा गया हो. पंखे, कूलर, एयरकंडीशन आराम कक्षों, क्लोज सर्किट कैमरे से लैस मंडप. निश्चित ही यह फाइव स्टार अनशन है. यह अनशन, योग शिविर, रामलीला, आज मेरे यार की शादी है, इत्यादि के बीच का कोई मुकाम है. यह धन, प्रबंधन और अनशन का दुर्लभ योग है. इसीलिए यह नैतिकता और आंदोलन का वियोग भी है. वैसे भी रामदेव की दास्तान तेजी से उभरे व्यक्ति की है, जिसके व्यवसाय ने कम समय में बड़ी मुनाफा दर हासिल की हो और जिसकी जबरदस्त राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा भी हो.
अन्ना ने जब अनशन शुरू किया तो उनके पास खुद की कोई संगठित भीड़ नहीं थी. साधारण उपस्थिति धीरे-धीरे स्वयंस्फूर्त लामबंदी में बदल गई. मगर रामदेव अपने अकूत पैसे और संगठन के बल का प्रदर्शन कर रहे हैं. लाई गई भीड़ कितनी भी ज्यादा हो, वह कभी भी थोड़ी सी आई गई भीड़ तक का मुकाबला नहीं कर सकती. रामदेव की संस्थाओं, उद्योगों के कर्मचारियों, भारत स्वाभिमान नाम के अर्ध-राजनीतिक दल, योग शिविरों में आने वाले लोगों की तादाद और भाजपा और आरएसएस की लामबंद की हुई जनता का कुल जमा योग इस अनशन में जुड़ सकता है. हालांकि यह भीड़ भी दिखाने के लिए काफी हो जाएगी. मगर इसके स्वयंस्फूर्त रूप से फैलने की ताकत कम हो गई है. रामदेव के शिविरों में पैसा चुकाकर शामिल होने वाले सभी इस आंदोलन में आ जाएंगे, ऐसा नहीं सोचा जा सकता. इसलिए सरकार के मंत्रियों के रामदेव के लिए पलक-पांवड़े बिछा देने के पीछे की घबराहट या दांव को बूझा जाना बाकी है.
लगता यही है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जनतर-मनतर के जनतंतर’ से निकली प्रक्रिया को कमजोर करने की नीयत से शुरू हो रही है दिल्ली के मैदान में रामदेव लीला. लीला के मुख्य पात्र और निर्माता दोनों रामदेव हैं. मगर कहानी, पटकथा और निर्देशन है आरएसएस का. आरएसएस के नायक सदा देश की बृहत्तर पटकथा में खलनायक साबित हुए हैं.
रामदेव के कांग्रेस की झोली में गिरने का कयास लगाया जा रहा है. यह हुआ भी तो पर्दे के पीछे होगा और बाद में पता चलेगा. नाटक की पटकथा भले रामदेव ने आरएसएस को दे दी हो, मगर निर्माता के रूप में उनके आर्थिक हित भी होंगे ही. कोई संयोग नहीं कि रामदेव के अनशन के ऐलान के होते ही सरकार ने सबसे पहले अपने आला आयकर अफसरों को बातचीत के लिए भेजा. इसलिए अनशन शुरू तो होगा. आरएसएस के खुलेआम करीबी रामदेव कांग्रेस से अदावत और मोहब्बत की नफासत को अपनी सियासत से कहां तक जोड़ पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी. रामदेव ने यह कहकर कि देश के ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ नहीं बोलना चाहिए, कुछ देर के लिए कांग्रेस को तसल्ली दी ही. मगर निर्माता और निर्देशक के बीच मतभेद के ज्यादा देर तक चलने के आसार नहीं हैं. राज्यों में गले तक भ्रष्टाचार में डूबी भाजपा केंद्र में विपक्ष की राजनीति तक नहीं कर पा रही है. उसे रामदेव जैसा सहारा चाहिए, जिसके सहारे वह दिल्ली पर फिर दावा कर सके. रामदेव को ‘अपनी’ सरकार में योग और आध्यात्म के धंधे के और चमकने की आशा रहेगी ही. यह जरूर है कि कांग्रेस ने सौदेबाजी के लिए आतुर रामदेव के मन के लड्डूओं की झांकी सरेआम निकलवा दी.
कांग्रेस के आओ समिति-समिति खेलें के खेल से आहत अन्ना की हालत यह है कि वे रामदेव की चाल की आलोचना शब्दों के बीच की खाली जगह में ही कर पा रहे हैं. उनके एक तरफ कांग्रेस तो दूसरी तरफ रामदेव हैं. अन्ना के पहले रामदेव अगर अनशन पर बैठे होते तो उनके खुद के अनुयायियों और भाजपा की लामबंदी के बावजूद आंदोलन की स्वयंस्फूर्तता पैदा नहीं हो पाती. रामदेव एक और सियासी खेमे के बेहद दमदार भोंपू बनकर रह जाते. मगर डेढ़ माह पहले लोकपाल विधेयक के लिए हुए अनशन से तस्वीर बदल चुकी है.
No comments :
Post a Comment