Tuesday, November 11, 2014

ऐसी मानसिकता से ही प्रलय आता है उद्धव जी

ओवैसी मुस्लिमों के मन में भर रहे जहरः शिवसेना
मीम ज़ाद फ़ज़ली
लगता है कि हमारे बहुधर्म प्रेम वाले देश में विचारधारा के साथ कुछ तत्व समाज की मानसिकता को संक्रमित करने में अमेरिका से शिक्षा ले रहे हैं। क्या इसी सोच के साथ देश की एकता और अखंडता को बचाये रखा जासकता है। इस समय शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कुछ ऐसे ही कारनामे अंजाम दे रहे हैं। अल्पसंख्यकों और दूसरे प्रान्त के लोगों के बारे में उन की सोच से देश ही नहीं सारा संसार भली भांति परिचित है। अमेरिका भी यही करता है अगर इस्राएल में किसी एक यहूदी के पैर में कांटा चुभ जाए तो वह दर्द से कराहने लगता है मगर इस्राइल अगर निरंतर ग़ाज़ा के निर्दोष नागरिकों पर मौत बरसाए तो इस पर अमरीका बहादुर को कोई तकलीफ नहीं होती।ठीक इसी तरह महाराष्ट्र में अगर कोई शिव सैनिक कितना भी अत्याचार करे वह नाजायज नहीं होता मगर अपने साथ हो रहे अन्याय पर अगर कोई दूसरा व्यक्ति ज़बान खोले तो वह देश विरोधी और इंसानियत का दुश्मन है। मुस्लिम नेता ओवैसी पर उद्धव ने आज जो कटाक्ष किया है उस से तो यही प्रतीत होता है कि शिव सेना को सरे जुल्म करने का सर्टिफिकेट मिला हुवा है ,मगर दूसरों को कुछ भी बोलने का अधिकार प्राप्त नहीं है। शिव  सेना की इसी मानसिकता ने आज उसकी यह दुर्गत बनाई है। मगर क्या किया जाये यदि कोई सच्चाई को स्वीकार करने की समझ से ही महरूम हो?  
खबर है कि ‘‘ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन’’ पर उद्धव ठाकरे द्वारा गहरी नाराजगी जाहिर करने के बाद, उनकी पार्टी शिवसेना ने आज हैदराबाद स्थित इस संगठन पर हमला तेज करते हुए इस पर अल्पसंख्यक समुदाय के दिमाग में ‘‘जहर भरने’’ का आरोप लगाया और महाराष्ट्र सरकार से उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखे संपादकीय में कहा है ‘‘ओवैसी बंधु (सांसद असाउद्दीन और विधायक अकबरूद्दीन ओवैसी) की कट्टरपंथी विचार व्यक्त करने और उनका प्रचार प्रसार करने की आदत है। दोनों ने देश में मुस्लिमों के दिमाग में जहर भरा। नांदेड़ नगर निगम में सफलता हासिल करने के बाद अब दोनों अपना प्रभाव मराठवाड़ा क्षेत्र में फैलाना चाहते हैं।’’ उद्धव ने रविवार को एआईएमआईएम का प्रत्यक्ष तौर पर संदर्भ देते हुए कहा था ‘‘हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में, उन ताकतों ने अपने सर उठाये जो हिंदुओं के लिए खतरनाक हैं।’’ पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिन्दे की पुत्री प्रणीति की, संगठन पर प्रतिबंध की मांग करने वाली टिप्पणी का समर्थन करते हुए शिवसेना ने कहा कि लोगों को आगे आना चाहिए और प्रणीति का समर्थन करना चाहिए।
मुखपत्र में लिखे संपादकीय में शिवसेना ने कहा है ‘‘प्रणीति शिन्दे ने सिर्फ भारत के लोगों की भावनाएं ही जाहिर की हैं। एआईएमआईएम जिस तरह काम करती है, शिवसेना उसके खिलाफ है। अब तो कांग्रेस तक उसके खिलाफ बोल रही है जो प्रशंसनीय है।’’ आगे कहा गया है ‘‘राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने दो सीटें जीतीं और 14 विधानसभा सीटों पर वह दूसरे या तीसरे स्थान पर रही। इससे उनके हौसले बुलंद हुए हैं। देवेन्द्र फडणवीस सरकार को इस पार्टी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। शिन्दे ने अपना रूख बिल्कुल साफ कर दिया है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। शिवसेना उनके साथ है।’’ एआईएमआईएम ने महाराष्ट्र में पहली बार चुनाव लड़ा और दो सीटें जीतने के साथ साथ कई इलाकों में बड़ी संख्या में मुस्लिम वोट अपने नाम किए। पार्टी ने 26 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे जिनमें से औरंगाबाद सीट से पत्रकार इम्तियाज जलील और बाइकुला सीट से वारिस पठान चुनाव जीते। कई सीटों पर एआईएमआईएम ने स्थापित पार्टियों के वोटों में सेंध लगाई।

Wednesday, October 15, 2014

मोदी को चिंतित अर्थशास्त्रियों का पत्र

मोदी को चिंतित अर्थशास्त्रियों का पत्र

14 अक्तूबर 2014

भारतीय किसान
भारत के 28 प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के भविष्य के प्रति चिंता जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है.
इस पत्र में उन्होंने 2005 में यूपीए के कार्यकाल में लागू मनरेगा से समाज के लाखों लोगों की ज़िंदगी पर पड़ने वाले असर का जिक्र किया है.
उन्होंने लिखा, "अनेक बाधाओं के बावजूद मनरेगा के अच्छे परिणाम मिले हैं. इस योजना से हर साल करीब पाँच करोड़ लोगों को रोज़गार मिलता है, जबकि इस योजना पर भारत के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.3 प्रतिशत खर्च होता है."
केंद्र में नई सरकार बनने के बाद से मनरेगा पर असर के कयास लगाए जा रहे थे.

अर्थशास्त्रियों की चिंता

अर्थशास्त्रियों ने लिखा, "मजदूरी के भुगतान में देरी होने पर क्षतिपूर्ति जैसे अधिनियम के शुरुआती प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया है. श्रम और सामान के इस्तेमाल का अनुपात 60:40 से घटाकर 51:49 कर दिया है."
मनरेगा
भारत के 28 प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने मनरेगा के भविष्य को लेकर चिंता जताई है.
उन्होंने सरकार की तरफ़ से इसको 200 ज़िलों तक सीमित करने के प्रयासों को आर्थिक सुरक्षा और मानवाधिकार से जुड़ा मामला बताया.
उन्होंने पत्र में लिखा, "तमाम प्रयासों से लगता है कि नई सरकार की प्रतिबद्धता इस योजना के प्रति नहीं है और वह इसे सीमित करना चाहती है."
अर्थशास्त्रियों ने लिखा कि मनरेगा में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई से अन्य सामाजिक योजनाओं में पारदर्शिता के नए मानक स्थापित करने में मदद मिली है.
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों में ज्यां द्रेज़, ऋतिका खेरा, अभिजीत सेन, जयंती घोस, अश्विनी देशपांडे जैसे नाम शामिल हैं.