मोदी को चिंतित अर्थशास्त्रियों का पत्र
14 अक्तूबर 2014

भारत के 28 प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के भविष्य के प्रति चिंता जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है.
इस पत्र में उन्होंने 2005 में यूपीए के कार्यकाल में लागू मनरेगा से समाज के लाखों लोगों की ज़िंदगी पर पड़ने वाले असर का जिक्र किया है.
उन्होंने लिखा, "अनेक बाधाओं के बावजूद मनरेगा के अच्छे परिणाम मिले हैं. इस योजना से हर साल करीब पाँच करोड़ लोगों को रोज़गार मिलता है, जबकि इस योजना पर भारत के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.3 प्रतिशत खर्च होता है."
केंद्र में नई सरकार बनने के बाद से मनरेगा पर असर के कयास लगाए जा रहे थे.
अर्थशास्त्रियों की चिंता
अर्थशास्त्रियों ने लिखा, "मजदूरी के भुगतान में देरी होने पर क्षतिपूर्ति जैसे अधिनियम के शुरुआती प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया है. श्रम और सामान के इस्तेमाल का अनुपात 60:40 से घटाकर 51:49 कर दिया है."

उन्होंने सरकार की तरफ़ से इसको 200 ज़िलों तक सीमित करने के प्रयासों को आर्थिक सुरक्षा और मानवाधिकार से जुड़ा मामला बताया.
उन्होंने पत्र में लिखा, "तमाम प्रयासों से लगता है कि नई सरकार की प्रतिबद्धता इस योजना के प्रति नहीं है और वह इसे सीमित करना चाहती है."
अर्थशास्त्रियों ने लिखा कि मनरेगा में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई से अन्य सामाजिक योजनाओं में पारदर्शिता के नए मानक स्थापित करने में मदद मिली है.
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों में ज्यां द्रेज़, ऋतिका खेरा, अभिजीत सेन, जयंती घोस, अश्विनी देशपांडे जैसे नाम शामिल हैं.
No comments :
Post a Comment