Saturday, June 20, 2009

हर गलती पर देने होंगे 10 रुपये

दैनिक हिंदुस्तान के पटना आफिस में नया नियम लागू हो गया है। यह नियम लागू कराया है यहां के स्थानीय संपादक अकु श्रीवास्तव ने। नियम ये है कि अगर कोई किसी तरह की गलती करता है तो उसे दस रुपये का जुर्माना अदा करना होगा। मतलब, अगर किसी रिपोर्टर से कोई खबर छूटती है तो उसे हर छूटी हुई खबर पर दस-दस रुपये का भुगतान करना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि अकु श्रीवास्तव ने इस नियम को खुद ही बनाकर लागू करा दिया। उन्होंने इस नियम को बनाने-लागू कराने से पहले संपादकीय विभाग के लोगों की राय ली। इसी मुद्द पर उन्होंने संपादकीय विभाग की सोमवार को बैठक बुलाई थी। बैठक में अकु ने नए नियम के बारे में सबको बताया और सबसे मशविरा किया। उनके सामने किसी ने इस नियम का विरोध नहीं किया बल्कि दबी जुबान से इसकी तारीफ ही की। वैसे भी, बॉस के गलत को गलत कहने का रिवाज मीडिया में अब नहीं रहा और बॉस लोग भी अपने गलत को दूसरे के मुंह से गलत सुनने के कतई इच्छुक नहीं होते क्योंकि बॉस लोगों का इगो ज्यादा बड़ा हो चुका है और व्यक्तित्व उसी अनुपात में छोटा। बैठक में सहमति के बाद नया नियम लागू करने का फैसला ले लिया गया। पर पत्रकार तो पत्रकार। लगते हैं एंगिल निकालने। मीटिंग के बाद इस नए नियम पर पत्रकारों ने दिमाग भिड़ा दिया और होने लगी कानाफूसी। जितने मुंह उतनी बातें। कुछ लोग इसे मंदी के दौर में संस्थान का थोड़ा और उद्धार करने का नया फार्मूला बता रहे हैं तो कुछ लोग इसे पत्रकारों के शोषण का एक और हथियार करार दे रहे हैं। कुछ इसे किसी अज्ञात सामूहिक समारोह के लिए चंदा इकट्ठा करने का उपक्रम बता रहे हैं तो कुछ लोग कम से कम गलती होने के लिए दबाव बनाने की रणनीति मान रहे हैं। वैसे तो हर मीडिया हाउस में गलती करने वालों को दंडित करने के कई तरह के कायदे कानून होते हैं लेकिन सेलरी काटने को बुरा इसलिए माना जाता है क्योंकि कोई भी कर्मचारी इरादन गलती नहीं करता और अगर मानवीय चूक के चलते गलती होती है तो उसे गंभीर अपराध नहीं माना जाना चाहिए। दूसरे, सेलरी ही वो चीज है जिसके आधार पर एक कर्मचारी अपने भविष्य की प्लानिंग करता है, घर के खर्चे का बजट बनाता है। ऐसे में सेलरी कटौती कर्मचारी के परिजनों के अरमानों को कुचलने जैसा होता है। गलती के बारे में कहा जाता है, गलती आदमी ही करता है, कंप्यूटर नहीं। इसीलिए मानवीय गलतियों को हमेशा माफी के लायक माना जाता है। अगर माफी लायक नहीं भी हैं तो गलती के स्तर के हिसाब से आमतौर पर लिखित नोटिस, सो काज, चेतावनी पत्र, फोर्स लीव, सस्पेंसन जैसे परंपरागत तरीकों से काम चलाया जाता है। लेकिन आजकल के साहब-सुब्बा लोग अपने प्रबंधन को खुश करने के लिए नए-नए तरीके इजाद करते जा रहे हैं। गलती पर सेलरी काट लेना, जुर्माना लगा देना, गाली दे देना, हाथ छोड़ देना......ये कुछ उसी तरह के तरीके हैं जो कर्मचारियों के चरम शोषण के लिए कुख्यात गैर-मीडिया संस्थानों और फैक्ट्रियों के दुर्जन मैनेजरों द्वारा लागू कराए जाते हैं। अब मीडिया संस्थानों में यही सारे तरीके लागू होने लगे हैं।
कहा जाता है कि किसी रिपोर्टर का दिन तभी खराब हो जाता है जब वह अपने प्रतिस्पर्धी अखबार में कोई बड़ी खबर देखता है, जो उससे अपने अखबार में मिस हो गई हो। वह घर से ही निराश और हताश मुद्रा में आफिस पहुंचता है। वहां उसको सिटी मीटिंग में जवाब देना होता है। कई बार तो उपर के लोगों तक अपनी सफाई पेश करनी पड़ती है। मतलब, गलती का खुद एहसास होना ही सबसे बड़ा दंड होता है। अगल गलती का एहसास नहीं है तो एहसास कराना भी एक तरह से दंड जैसा ही है। लेकिन अब बात इमोशनल से प्रोफेशनल हो चुकी है। हर चीज लिखत-पढ़त और कारपोरेट स्टाइल में। तो दंड भी क्यों न कारपोरेट स्टाइल में मिले। खैर मनाइए, हिंदुस्तान, पटना में अभी तो केवल दस रुपये कट रहे हैं। हो सकता है कि कुछ संस्थानों में हर गलती पर सौ रुपये या हजार रुपये काटे जाते हों और कई संस्थान ऐसे भी हों जहां किसी भी गलती पर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता हो। तो इन संस्थानों के मुकाबले हिंदुस्तान, पटना में गलती पर सजा देने के लिए बना नया नियम ज्यादा मानवीय है, यह कहा जा सकता है।

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