Saturday, June 20, 2009

लाल गलियारे के खतरनाक संकेत

पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर जिले में सीपीएम और माओवादियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई काफी समय से चल रही है। आश्चर्यजनक संयोग है कि पश्चिम बंगाल में सीपीएम के कमजोर होने और तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस की सक्रियता बढ़ने के साथ ही इस प्रभावित क्षेत्र में माओवादी विद्रोही और मजबूत हुए हैं।पिछले कुछ दिनों से इस जिले के लालगढ़ में जारी हिंसा के बाद माओवादियों ने जिस तरह इस पूरे कस्बे को ‘आजाद क्षेत्र’ घोषित किया है और सुरक्षा बलों के लिए वहां पहुंचना दुर्गम कर दिया है, उससे इस समस्या का वह खतरनाक पहलू उजागर होता है जिसके तहत माओवादिओं ने देश के उत्तर से उत्तर-पूर्व होते हुए दक्षिण-पूर्व तक लाल गलियारे में ‘लिबेरेटेड जोन’ या ‘आजाद क्षेत्र’ बनाने का मंसूबा पाल रखा है।
लालगढ़ की हिंसा के बीच वहां के माओवादी नेता द्वारा उनकी कार्रवाई को कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के समर्थन का दावा इस घटना के राजनीतिक दांव-पेंच का उदाहरण है। पश्चिम बंगाल की कानून-व्यवस्था की स्थिति के प्रति केंद्र का रुख हमेशा अनिश्चय का रहा है, खासतौर पर पिछली और वर्तमान यूपीए सरकार के कार्यकाल में।
पिछली सरकार में तो वामदल केंद्र सरकार को समर्थन ही दे रहे थे, इसलिए गत वर्ष हुई नंदीग्राम और सिंगूर की घटनाओं में कें द्र द्वारा कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं हुई और इस समय लालगढ़ में हो रही हिंसा में केंद्र के सामने एक तरफ हैं पुराने सहयोगी जिनसे भावनात्मक लगाव अभी भी है और दूसरी तरफ है वर्तमान सहयोगी, जिसकी कर्ता-धर्ता ममता बनर्जी केंद्र में मंत्री भी हैं।
केंद्र की कश्मकश समझ में आती है, क्योंकि ममता ने स्पष्ट कहा है कि उनकी केंद्र में किसी भी भूमिका में लंबे समय तक रुचि नहीं है, उनका लक्ष्य प. बंगाल का नेतृत्व है। तृणमूल को सीपीएम के साथ अपनी खूनी लड़ाई में अल्पसंख्यक कार्ड के अलावा माओवादियों का साथ लेने से भी परहेज नहीं है। पश्चिम बंगाल में वामदलों की सरकार को गिराने के लिए किसी से भी, कैसा भी समर्थन इस्तेमाल करने को जायज ठहराना कहां तक जायज है, यह विचारणीय है।
विचित्र संयोग है कि जहां देश के तमाम राज्यों में माओवादियों द्वारा की जा रही हिंसक वारदातों पर सीपीएम और अन्य वामदल खामोश रहते हैं, वहीं उन्हीं के अपने गृहराज्य में बवाल होने पर उन्हीं माओवादियों पर कठोर कार्रवाई के लिए बंगाल की राज्य सरकार तुरंत तैयार है। साफ है कि वामदलों के संकट कम होने के आसार अभी नहीं दिखते।

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