राजकिशोर Saturday, October 31, 2009 02:28 [IST]
स्मृति विशेषः श्रीमती इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व में जादू था, इसमें कोई शक नहीं है। राजनीति विज्ञान में करिश्माई नेतृत्व का अध्ययन किया जाता है। लेकिन अभी तक यह तय नहीं किया जा सका है कि कोई करिश्माई नेता बनता कैसे है।इंदिरा गांधी का आकषर्ण किस बात में निहित था? जाहिर है, किसी एक विशेषता से कोई करिश्मा खड़ा नहीं होता। इंदिराजी में एक आभिजात्य था। यह आभिजात्य उनके पिता जवाहरलाल नेहरू में भी था, लेकिन उनके व्यक्तित्व के अधिकांश पहलू जनसाधारण के बीच इतने खुले हुए थे कि वहां रहस्य नाम की कोई चीज नहीं रह गई थी। इसके विपरीत, इंदिरा गांधी का व्यक्तित्व काफी हद तक रहस्यपूर्ण था। लेकिन वे एकांतवासिनी नहीं थीं। इतने बड़े देश की राजनीति संभाल रही थीं। कांग्रेस जैसा विशाल संगठन चला रही थीं। इतने विस्तृत सार्वजनिक जीवन के बावजूद उनके भीतर कुछ था जो सबसे अलग और सबसे अछूता था। यह शायद कुछ ऐसी ही चीज थी, जिसे हम भारत का रहस्य कह सकते है, जो स्वयं भारतवासियों के लिए भी अबूझ बना रहता है। राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण होता है, जनता का विश्वास जीतना। जो जनता के दिल पर आसन जमा लेता है, वह उसके सातों खून माफ कर देती है। इंदिरा गांधी को भारत की जनता ने जितना चाहा, उतना किसी और नेता को नहीं। न उनके पहले, न उनके बाद। गांधीजी की बात अलग थी। वे महात्मा थे। नेहरू किसी दार्शनिक की तरह लगते थे। भगत सिंह और सुभाष वीर थे। पर इंदिरा गांधी शासक थीं। इंदिरा गांधी के प्रति इस आकषर्ण के पीछे कहीं यह विश्वास निहित था कि देश के गरीब लोगों के साथ उनका गहरा सरोकार है। इंदिरा गांधी के शासन में गरीबों को राहत पहुंचाने वाली दर्जनों योजनाएं गांव-गांव में पहुंचीं। इससे देश में एक नया वातावरण बना। हताश जनता में आशा का संचार हुआ। यह आशावाद इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी थी। बांग्लादेश युद्घ इंदिरा गांधी का सबसे साहसिक निर्णय था। भारत ने बहुत दिनों से अपना पराक्रम दिखाया नहीं था। इसलिए यह भारतीय मानस के लिए एक अप्रत्याशित उत्सव की तरह था। उसके बाद ही इंदिरा गांधी सही अर्थो में जन-मन की प्रिय बनीं और आज तक बनी हुई हैं। इंदिरा गांधी के चमत्कारी व्यक्तित्व को जिस चीज ने सदा के लिए हरा-भरा बना दिया, वह था अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भारत के स्वाभिमान का डंका। यह एक नई बात थी। अमेरिकी नीतियों के प्रति इंदिरा गांधी में जो वितृष्णा थी, वह गहरी और वास्तविक थी। उस वितृष्णा को भारत के अंतर्मन में आज भी देखा जा सकता है लेकिन ये सब इंदिरा गांधी के संश्लिष्ट व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू भर हैं। क्या उनका स्त्री होना भी उनके जादू का एक कोण था? बेशक दक्षिण एशिया में अनेक स्त्री शासक हुई हैं। पर इंदिरा गांधी इन सबमें विशिष्ट थीं। यही वजह है कि उन्हें आज भी स्त्री सशक्तीकरण का एक मानक माना जाता है
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)यह 1982-83 की बात है। मैंने अपनी एक किताब उनको भेंट करने के लिए समय मांगा। फिर मुझे फोन आया कि आप अकेले न आएं। मैडम और बच्चों को भी लेकर आएं। मैं, मेरी पत्नी और तीन बच्चे जब इंदिराजी के घर पहुंचे तो उस समय वहां इंडोनेशिया से कोई डेलीगेशन आया हुआ था। बीच में जो वेटिंगरूम था, उसमें एम एल फोतेदार और आर के धवन बैठे थे। उन्हांेने इंदिराजी के कान में कुछ कहा। इंदिराजी जोर से बोलीं, ‘वह जो कमरा बहुत दिनों से नहीं खुला है, उसको खुलवाओ।’ जल्दी-जल्दी वह कमरा खोला गया। सफाई की गई। फूल-वूल लगाए गए। तब तक वो हमारे साथ कॉरीडोर में खड़ी रहीं। उसके बाद वो हमारे साथ करीब आधे घंटे तक बैठी रहीं। जैसे उनको कोई और काम न हो। मैंने उन्हें अपनी किताब भेंट की।
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