Tuesday, November 17, 2009

मामूली आदमी और महंगाई

बढ़ती महंगाई जिम्मेदार कौन ?
अनुज खरे
लगातार खबरें आ रही हैं कि सरकार बढ़ती महंगाई पर काबू पाने में खुद को लाचार मान रही है। सरकार के बड़े मंत्री प्रणव मुखर्जी, शरद पवार और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहुलूवालिया तक साफ तौर पर कह चुके हैं कि अगले कुछ महीनों तक आम लोगों को महंगाई से जूझना ही होगा। कृषि मंत्री पवार का कहना है कि नई फसल आने तक लोगों को इस महंगाई से बचाने में सरकार बेबस है। इसी तरह वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी का भी कहना है कि महंगाई तभी कम होगी जब राज्य अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार कर लेंगे, वहीं मोंटेक सिंह का कहना है कि सरकार के पास कोई समाधान नहीं है। बढ़ती महंगाई से बेहाल लोग जैसे तैसे करके अपने बजट में घर चला रहे हैं। तो यहां प्रश्न है कि ऐसी स्थिती में जनता समाधान के लिए किसकी तरफ देखे।- यदि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग इतने महत्वपूर्ण मसले पर साफ तौर पर हाथ खड़े कर देते हैं तो आखिर वे किस हक से जनता की की नुमाइंदगी करने का दावा करते हैं।- यदि मामला केंद्र और राज्य सरकार के बीच में है तो इसे सुलझाने की जिम्मेदारी किसकी है ? जनता क्यों बलि का बकरा बन रही है।- सरकार ने हाल ही में महंगाई नापने का नया तरीका अपनाने का फैसला किया था जिसके बाद महंगाई की दर 13.39 फीसदी पाई गई जो वास्तविकता के काफी करीब है, क्योंकि इसके पहले पुराने तरीके से किए गए सूचकांक ने महंगाई दर 1.51 फीसदी ही दिखाई गई थी। इस प्रक्रिया से कम से कम सरकार को इस बात का अहसास तो हुआ था कि लोग महंगाई से किस कदर त्रस्त हैं। अन्यथा को कुछ ही महीने पहले महंगाई दर में जबर्दस्त गिरावट दर्ज की गई थी, जिसे सरकार अपनी उपलब्धियों के तौर पर दिखा रही थी। जबकि विशेषज्ञ तब भी कह रहे थे कि यह सूचकांक सही स्थिति नहीं दर्शा रहा है। तब भी कीमतों में कमी नहीं आना उनकी बात को सही भी साबित कर रहा था। विचारणीय प्रश्न है कि इस अवधि में ऐसा क्या हुआ कि सरकार को सूचकांक की खामी समझ मे आ गई । इस पर तुर्रा ये कि जब सही महंगाई दर सामने आई तो सरकार ने उसकी जिम्मेदारी लेकर लोगों को निजात दिलाने के बजाए अपने ही हाथ खड़े कर दिए।

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