जनता दरबार ने सुनाया फरमान : हाजिर हो सरकार
बीएस टीम / August 16, 2009
कमजोर मॉनसून है वजह
महंगाई की चिंता पूरे देश को सता रही है। कोई सरकार को इसके लिए दोषी ठहरा रहा है तो कोई मुद्रास्फीति को लेकिन सच बात तो यह है कि कमजोर मॉनसून ही महंगाई के लिए जिम्मेदार है। क्योंकि इस साल भारत में औसत से भी कम बारिश हुई है। इसकी वजह से खाद्य पदार्थों के उत्पादन में कमी आई और उनकी मांग में बढ़ोतरी हुई है।मांग और आपूर्ति में एक तरह का असंतुलन बन गया है और भाव बढ़ने लगे हैं। कमजोर मॉनसून के अलावा कमजोर निर्यात और उच्च राजकोषीय घाटा महंगाई के लिए जिम्मेवार है।
मुकेश रंगा
इंजीनियरिंग कॉलेज, बीकानेर, राजस्थान
गलत नीतियों का नतीजा
महंगाई के सबसे ज्यादा जिम्मेदार सरकार की गलत नीतियां हैं। जरूरी वस्तुओं के भाव को नियंत्रित नहीं रख पाना गलत नीतियों का ही नतीजा है। अगर सही नीतियां होतीं तो जमाखोरी और कालाबाजारी पर रोक लगाकर महंगाई को काबू में किया जा सकता था।नीतियों के सही प्रयोग से महंगाई पर अभी लगाम कसा जा सकता है। महंगाई को नियंत्रित नहीं किए जाने से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए सरकारी नीतियां ऐसी होनी चाहिए जो जनता के हित में हों और लोग चैन की सांस ले सकें।
नयन प्रकाश गांधी 'प्रदीप्त'
पीएसबीएम, पुणे
सरकार है जिम्मेदार
महंगाई के लिए केवल और केवल सरकार जिम्मेदार है। सरकार की समस्त नीतियां पूंजीवादी व विदेशी शक्तियों को संरक्षण देने की हैं और उसे अपने देश की 80 फीसदी की तादाद वाली गरीब जनता की जरा भी फिक्र नहीं है। तभी तो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्रियों में शुमार किए जाने वाले हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि महंगाई अभी और बढ़ेगी।
सरकार विमान ईंधन, कार, एसी, मोबाइल, कंप्यूटर आदि की कीमतें घटाने के उपाय कर सकती है पर खाद्यान्न क्षेत्र में दखल नहीं दे सकती। सरकार को चिंता है उद्योगपतियों की। यदि मॉनसून महंगाई का कारण है तो जिन सालों में मॉनसून बेहद अच्छा रहा उन सालों में कीमतें क्यों चढ़ी? जब सरकार अमीर वर्ग के उपभोग की तमाम वस्तुएं सस्ती कर सकती है तो वह आम गरीब जनता की रोटी भी सस्ती कर सकती है।
कपिल अग्रवाल
1915, थापर नगर, मेरठ, उत्तर प्रदेश
सभी बराबर के जिम्मेदार
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के 60 फीसदी से ज्यादा लोग कृषि पर ही निर्भर हैं। इस बार मॉनसून की हालत गड़बड़ है और बारिश 30 से 40 फीसदी तक कम हुई है। इसका असर पैदावार पर पड़ेगा। जबकि मांग में कमी आने की संभावना नहीं है। इससे महंगाई पर असर पड़ेगा।कारोबारी भी मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं रहते हैं। वे जमाखोरी शुरू कर देते हैं और इससे बाजार में माल की कमी होती है और दाम बढ़ते हैं। सरकार ने कायदे-कानून बना रखे हैं लेकिन उनका कड़ाई से पालन नहीं होता है। सरकार अगर जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे तो महंगाई पर एक हद तक काबू पाया जा सकता है।
हरनारायण जाजू
मुंबई
कारोबारी और सरकार जिम्मेदार
सिंचाई के वैकल्पिक साधन विकसित किए जाने के बावजूद उससे गरीब किसानों को बहुत लाभ नहीं मिल रहा है। वे किसानी के लिए अभी भी मॉनसून पर ही निर्भर हैं। वहीं कारोबारी का मुख्य मकसद पैसा कमाना होता है। इसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। कुल मिलाकर कारोबारियों को लूटने का मौका चाहिए।जहां तक सरकार का प्रश्न है तो उसे लोकतंत्र का नाटक खेलने के लिए इन्हीं कारोबारियों पर निर्भर रहना पड़ता है। अत: सरकार इनके खिलाफ नहीं जा सकती है। सरकारी आंकड़ों में महंगाई घट रही है लेकिन वास्तविकता में यह अपने चरम पर है और लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इसके बावजूद सरकर हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
राजेश कपूर
भारतीय स्टेट बैंक, एलएचओ, लखनऊ
कालाबाजारी की मार
अषाढ़ का चूका किसान और डाल से चूका बंदर कहीं का नहीं रहता है। भारतीय अर्थव्यवस्था मॉनसून का जुआ है। बारिश में कमी की वजह से कृषि पर निर्भर देश की 60 फीसदी आबादी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। महंगाई इन्हीं में से एक है।जाहिर है कि पैदावार कम होने से बाजार में आपूर्ति घटेगी और दाम चढ़ेंगे। एक तरफ मॉनसून की मार तो है ही साथ ही साथ दूसरी तरफ कारोबारी वर्ग ने माल को गोदामों में रोककर और कालाबाजारी करके महंगाई को और ज्यादा बढ़ाने का कार्य किया है।
अनुराधा कंवर
रामपुरा हाऊस, सिविल लाइंस, बीकानेर, राजस्थान
सरकार और उपभोक्ता जिम्मेदार
मांग और पूर्ति के नियम का अनुसरण करके उपभोक्ताओं को उन वस्तुओं का उपभोग कम कर देना चाहिए जिनकी कीमतें ऊंची हैं और उनकी क्रय शक्ति से बाहर हैं। ऐसे वस्तुओं की मांग जब घटेगी तो स्वाभाविक तौर पर इनके भाव में भी कमी आएगी। सरकार की ओर से मूल्य नियंत्रण जरूरी है।सरकार मूक दर्शक की तरह बढ़ती हुई महंगाई को देखती नहीं रह सकती हैं। जनहित में सीधा हस्तक्षेप जरूरी है और आवश्यकता के मुताबिक सरकारी दुकानों पर कम भाव पर अनिवार्य वस्तुओं की बिक्री की व्यवस्था की जानी चाहिए। महंगाई को रोकने के लिए सरकार को जिस तरह के ठोस कदम उठाने चाहिए थे, वे उसने नहीं उठाए।
केडी सोमानी
ऋषिनगर विस्तार, उज्जैन, मध्य प्रदेश
सरकारी नीतियां सर्वाधिक जिम्मेदार
कारोबारी वर्ग नैतिकता भुला कर मुर्दे का कफन बेचकर मुनाफा कमाने वाला बेरहम वर्ग हो गया है। यह वर्ग जमाखोरी, कालाबाजारी और भ्रष्टाचार फैलाकर उपलब्धता घटा हुआ दिखाकर गरीबों के पेट पर लात मारकर भी मंहगाई बढ़ाता है ताकि मुनाफा खींच सके। सरकार का कर्तव्य है कि वह मानूसन, कारोबारी, शांति-अशांति का ध्यान रखते हुए ऐसी व्यवस्था करे जिससे जनता का मंहगाई के नाम पर शोषण न हो।दुर्भाग्य से हमारी सरकार की मंदी की ओट में बढ़ाई गई नकदीय तरलता की नीति, कृषि क्षेत्र की उपेक्षा, जलवायु परिवर्तन के समझौते और खुले बाजार की नीति ने मंहगाई को बेतहाशा उछाल दिया है। महंगाई के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार सरकार है और यदि वह यथार्थवादी नीतियां अपनाए तो मंहगाई के घोड़े पर काबू पाया जा सकता है।
ठाकुर सोहन सिंह भदौरिया
भदौरिया भवन, मुख्य डाकघर के पीछे, बीकानेर, राजस्थान
जमाखोरी ने बढ़ा दी महंगाई
महंगाई को बढ़ाने में सरकार, कारोबारी और मॉनसून तीनों दोषी हैं। सरकारी महकमे के मौसम विभाग का हालिया आंकड़ा कहता है कि पिछल साल की तुलना में बारिश 13 फीसदी अब तक कम हुआ है। मौसम विभाग तथा सरकार सरकार के अन्य विभाग और सरकारी आंकड़ें आम जनता को उलझाए हुए हैं।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक महंगाई दर नकारात्मक रही है। जबकि आम आदमी को दो जून की रोटी के जुगाड़ में खून-पसीना एक करना पड़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ कारोबारियों ने जमाखोरी करके भारी मुनाफा कमाना शुरू कर दिया है। हाल ही में गुजरात में एनजीओ के गोदामों में हजारों टन चीनी पकड़ी गई थी। यह जमाखोरी का ही नतीजा है।
संतोष कुमार
मैकरॉबर्टगंज, कानपुर, उत्तर प्रदेश
सरकारी नीतियों ने बढ़ाई महंगाई
दिनोंदिन बढ़ रही महंगाई के लिए केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। सरकार ने समय रहते ही सटोरिये और स्टॉकिस्टों पर कार्रवाई नहीं की। अब जब छापेमारी की कार्रवाई की जा रही है तो भारी पैमाने पर स्टॉकिस्टों के गोदामों से अनाज बाहर निकल रहा है।साथ ही वायदा कारोबार को तरजीह दिए जाने की नीतियों ने भी महंगाई को बढ़ावा दिया है। जिस प्रकार वायदा बाजारों में खुलेआम कृषि आधारित उत्पादों की बोलियां लगाई जा रही हैं वह तो एक प्रकार से देखा जाय तो सट्टेबाजी का ही हिस्सा है।
इसके अलावा कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स को खत्म करके सरकार ने वायदा बाजार को और भी ज्यादा आजादी दे दी है। लिहाजा महंगाई आसमान पर है और सरकार केवल तमाशा देख रही है।
निखिल बोबले
बैंक ऑफ अमेरिका क्वाटेंनियम, मालाड़, मुंबई - 64
सरकारी उपेक्षा से बढ़ी महंगाई
महंगाई रोकने का जिम्मा जिन लोगों पर है वे असहाय नजर आ रहे हैं। जब लोकसभा चुनाव हो रहे थे तो जनता को नेताओं ने सिर माथे पर रखा था लेकिन आज लोगों की चिंता करती हुई कोई भी राजनीतिक दल नहीं दिख रही है। नेता जीत का जश्न मनाने और सत्ता सुख भोगने में मशगूल हैं और जनता दाने-दाने का तरस रही है।बढ़ती महंगाई के लिए मॉनसून और कारोबारियों से कहीं ज्यादा जिम्मेदार सरकार है। क्योंकि अगर सरकार ने ठोस और परिणामदायी योजना बनाई होती तो महंगाई के कारण आज जैसे बदतर हालत पैदा ही नहीं होती। इसके बाद भी प्रधानमंत्री का यह कहना कि महंगाई और बढ़ेगी, बेहद गैरजिम्मेदाराना है।
रमेश चंद्र दूबे
मालवीय रोड, गांधी नगर, बस्ती, उत्तर प्रदेश
आंकड़ों के खेल में खा गए गच्चा
वैश्विक अर्थव्यवस्था जब मंदी की चपेट में थी तो भारत की मुद्रास्फीति दर लगातार घटती जा रही थी। पहले तो लोगों को इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि मुद्रास्फीति सूचकांक में जीवनावश्यक वस्तुओं की हिस्सेदारी न के बराबर है। जब मुद्रास्फीति ऋणात्मक हुई तो लोगों की आंखें खुलीं और असल जीवन में महंगाई का लोग अहसास करने लगे। दरअसल, सरकार को भी मुद्रास्फीति के इन आंकड़ों के खेल को आम लोगों के समक्ष स्पष्ट करना जरुरी था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। हालांकि, सरकार ने ऐसा करना उचित नहीं समझा और घटती हुई महंगाई दरों की आंखमिचौली में सरकार भी जनता के साथ शामिल हो गई। इसका खामियाजा महंगाई के तौर पर देश के आम लोगों को सबसे ज्यादा भुगतना पड़ रहा है।
शर्मिला भरणे
गृहिणी, विरार, ठाणे
नीति निर्माता हैं कसूरवार
जब प्रधानमंत्री ही यह बोलें कि महंगाई अभी और बढ़ सकती है तो फिर महंगाई तो बढ़ेगी ही। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि जिन्हें महंगाई और मूल्य नियंत्रण के लिए प्रयास करना चाहिए वही प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर महंगाई बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं।मॉनसून के सामान्य न रहने की दशा में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग और आपूर्ति का संतुलन अवश्य गड़बड़ाता है। पर महंगाई बढ़ने के लिए इससे भी अधिक जिम्मेदार है सरकार का ढुलमुल रवैया। हर कोई जानता है कि चुनावी फंड कहां से आता है। जिन उद्योगपतियों और व्यवसायियों से चुनावी फंड में सहयोग लिया जाता है, उन्हें और उनसे जुड़े कारोबारियों को छूट देने पर महंगाई बढ़ जाती है।
रमेशचंद्र कर्नावट
महानंदानगर, उज्जैन, मध्य प्रदेश
सरकारी नाकामी से बढ़ी महंगाई
बेलगाम महंगाई सरकार की नाकामी को ही साबित करती है। आवश्यक वस्तुओं के दाम नियंत्रित करने की सरकारी मशीनरी आज कहीं नजर नहीं आ रही है। वैसे जरूरत के वक्त में सरकारी मशीनरी का सो जाना नई बात नहीं है। महंगाई के लिए मॉनसून को जिम्मेदार ठहराना सही नहं है।मॉनसून में थोड़ी कमी हो जाना तो एक बहाना भर है। मॉनसून इतना नहीं गड़बड़ाया है जितना की महंगाई के कारण आम आदमी का चूल्हा-चौका गड़बड़ हो गया है। हालात ऐसे ही रहे तो देश में जल्द ही भूख से परिवारों के सामूहिक भुखमरी के समाचार आने शुरू हो जाएंगे। तब सरकार अपनी फजीहत से बचने के लिए वह सब कुछ करेगी जो यदि आज कर दे तो सबका भला हो जाए।
सत्येंद्र नाथ गतवाला
बभनगावां, गांधी नगर, बस्ती, उत्तर प्रदेश
पुरस्कृत पत्र
तालमेल का अभाव है दोषी
डॉ. एमएस सिद्दीकी
नई बस्ती,असगर रोड, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश
कमजोर आपूर्ति प्रबंधन, जमाखोरी, कालाबाजारी, उत्पादन में गिरावट, केंद्र और राज्य सरकारों में तालमेल का अभाव जैसे कारण महंगाई के लिए जिम्मेदार हैं। किसी एक कारण को पूरी तरह से महंगाई के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। महंगाई अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों का परिणाम है।मॉनसून की बेरुखी आग में घी का काम कर रही है और दिनोंदिन महंगाई बढ़ती ही जा रही है। जरूरत इस बात की है कि महंगाई के कारणों की तह में जाकर इसके लिए जिम्मेवार बुनियादी कारणों को दूर करने का बंदोबस्त किया जाए। प्रधानमंत्री ने भविष्य में महंगाई बढ़ने की आशंका व्यक्त की है और राज्यों से महंगाई रोकने के लिए कठोर उपाय करने का आग्रह किया है। महंगाई पर काबू पाने के लिए इस पर अमल किया जाना चाहिए।
अन्य सर्वश्रेष्ठ पत्र
कारोबारी और सरकार जिम्मेदार
समरबहादुर यादव
शांति नगर, ठाणे - महाराष्ट्र
महंगाई के लिए मॉनसून को जिम्मेदार नहीं मान सकते हैं। महंगाई के लिए सरकार और कारोबारी दोनों जिम्मेदार हैं। चंद दिनों पहले संप्रग सरकार ने दूसरी बार सत्ता की कमान संभाली है।जगजाहिर है कि चुनावी तैयारियों के लिए नेता कारोबारियों से पैसे ऐंठते हैं। अब वही कारोबारी नेताओं को दिए गए पैसों की वसूली के लिए ग्राहकों से मनमाने ढंग से उत्पादों की कीमतें वसूल रहे हैं। इससे साफ है कि सरकार और कारोबारियों ने मिलकर आम आदमी के लिए महंगाई का तोहफा देकर जीना मुहाल कर दिया है।
बयानबाजी से बढ़ी महंगाई
योगेश जैन
पैंटालूंस ट्रेजर आईलैंड, एमजी रोड, इंदौर, मध्य प्रदेश
तेजी से बढ़ती महंगाई के लिए सही मायने में हमारे प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री के गैरजिम्मेदराना बयान ही अधिक जिम्मेदार हैं। 'महंगाई तो अभी और बढ़ सकती है' जैसे बयानों से जमाखोरों, कालाबाजारियों और सट्टेबाजों को प्रोत्साहन मिलता है।
मॉनसून के सामान्य नहीं रहने की अवस्था में भी उपभोक्ता वस्तुओं में न तो अचानक कोई कमी होती है और न ही महंगाई बढ़ती है। सरकार ही यदि शिथिल हो जाए तो फिर महंगाई बढ़ने के लिए मॉनसून और कारोबारियों को जिम्मेदार मानना कहां तक उचित है?
प्राकृतिक मार ने पैदा किया संकट
अनंत पाटिल
समाजसेवक, वरली गांव, मुंबई - 30
महंगाई रोकने को लेकर सरकार आए दिन प्रयासरत देखी जा रही है। लेकिन कुदरत के आगे सब बेबस हैं। जिस प्रकार मॉनसून की अपेक्षा की गई उससे भी कम बरसात ने अब तक दस्तक दी है।इस वजह से पैदा होने वाली स्थिति को देखते हुए महंगाई आसमान छू रही है। सरकार ने चीनी, दाल जैसी जीवनावश्यक वस्तुओं की कीमतें कम कर उन्हें बाजार में उतारा लेकिन मॉनसून की आंखमिचौली ने आम लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। ऐसे में बेहतर मॉनसून के बाद ही सरकार से महंगाई रोकने की उम्मीद की जा सकती है।
कई कारण हैं महंगाई के
विजय कुमार लुणावत
पूनम जूस सेंटर, मुक्ति धाम के सामने, नासिक रोड, महाराष्ट्र
भारत में महंगाई कुछ अधिक तीव्रता से बढ़ रही है। देश का मध्यम और निम् वर्ग घोर आर्थिक संकट में जीवन व्यतीत कर रहा है। मॉनसून के सामान्य नहीं रहने की दशा में आवश्यक खाद्यान्न का उत्पादन प्रभावित होता है। इस वजह से उपभोक्ता वस्तुओं के दाम बढ़ने की संभावना बनी रहती है।इस परिस्थिति का लाभ लेकर जमाखोर और सटोरिये आवश्यक वस्तुओं का कृत्रिम अभाव बनाकर महंगाई को बढ़ाते हैं। ऐसा हो रहा है लेकिन सरकार सो रही है। सही मायने में कहा जाए तो महंगाई बढ़ने के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं।
बकौल विश्लेषक
जमाखोरी और कालाबाजारी ने किया है दाल में काला
देविंदर शर्मा
कृषि विशेषज्ञ
भावना और अनुमान के आधार पर इस महंगाई को पैदा किया गया है। महंगाई की कोई ठोस वजह है ही नहीं। कहीं भी आपूर्ति और मांग का कोई संकट नहीं है। दाल के उत्पादन के मामले में पिछले साल और इस साल में कोई फर्क नहीं है।फिर भी दाल के भाव आसमान छू रहे हैं। सब्जियों के भाव भी बढ़ते ही जा रहे हैं। जबकि उत्पादन में गिरावट नहीं आई है। देश में गेहूं और चावल का 5.4 करोड़ टन अतिरिक्त भंडार है। तेजी से बढ़ती महंगाई के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार जमाखोरी और कालाबाजारी है।वायदा कारोबार भी महंगाई बढ़ाने के लिए काफी हद तक कसूरवार है। महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार भी सजग नहीं है। सरकार इसलिए भी सुस्त है कि महंगाई बढ़ने की वजह से जीडीपी के आंकड़ों में सुधार होता है। इससे सरकार को आर्थिक मोर्चे पर अपनी साख बचाने का अवसर मिलता है।सरकार यह कह रही है कि मंदी के बावजूद हमारी नीतियों की वजह से जीडीपी बेहतर रही। अब तो प्रधानमंत्री ने भी यह कह दिया है कि महंगाई के लिए लोगों को तैयार रहना चाहिए। इससे जमाखोरों का मनोबल और बढ़ेगा और साथ ही महंगाई भी। साफ है कि सरकार कुछ करने वाली नहीं है।महंगाई को काबू में करने के लिए चावल, दाल और गेहूं पर भंडार की सीमा तय होनी चाहिए। जो भी इसका उल्लंघन करे उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया जाए और उसे जेल भेजा जाए। वायदा कारोबार से कृषि उत्पादों को बाहर करना चाहिए। इन दो कदमों से जमाखोरी और कालाबाजारी रुकेगी और महंगाई पर लगाम लगाई जा सकेगी।
बातचीत: हिमांशु शेखर
कारोबारी नहीं सरकार है इस खेल की सूत्रधार
बनवारी लाल कंछल
राष्ट्रीय अध्यक्ष, उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल, पूर्व राज्यसभा सदस्य
महंगाई के लिए मेरी नजर में केवल और केवल केंद्र सरकार ही दोषी है। व्यापारियों का इसमें कोई दोष नही है। मॉनसून को भी दोष देना ठीक नही है। वैसे भी मॉनसून तो चल रहा है और इस बार के सूखे का असर अभी तो देखने में आएगा नहीं।उसके लिए तो छह महीने लगेंगे जब फसल कट कर बाजारों में आएगी। सूखा पहले भी पड़ा पर इस कदर मंहगाई कभी नही बढ़ी है। यहां तो महंगाई मुंह बाये खड़ी है और लोगों का जीना हराम कर रही है। उधर सरकार कह रही है कि सूखे के चलते आने वाले दिनों में चीजों के दाम बढ़ेंगे।अगर आने वाले दिनों में चीजों के दाम बढ़ेंगे तो अभी क्या हो रहा है। आपने देखा कैसे सफाई से आम चुनाव के ठीक पहले डीजल-पेट्रोल के दाम भी गिरा दिए गए और चीजों के दाम भी काबू में थे। रही बात कारोबारी को दोष देने की तो ये तो सबसे आसान है कि उसे दोष दो जो सामान बेचता हो, मुनाफाखोर ठहरा दो उसे। पर सच ये नहीं है।असलियत तो ये है कि व्यापारी कभी महंगाई बढ़ाने की बात सोचता भी नही है। आज कुछ लोग जमाखोरी का आरोप आसानी से व्यापारी पर लगा देते हैं पर वो ये नहीं सोचते कि बड़े रिटेल स्टोर वाले क्या कर रहे हैं।असली जमाखोर तो रिटेल वाले लोग ही हैं जो कि थोक खरीदारी करके दाम बढ़ाते हैं और फिर अपना मुनाफा कमा उसे इन्हीं दिनों में स्कीम का लालच दे कर बेचते हैं। मेरी राय में महंगाई को रोकना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और वह इससे मुंह नही मोड़ सकती है। सरकार अगर ऐसा करती है तो इसे जनता के साथ धोखा ही कहा जा सकता है।
बातचीत: सिध्दार्थ कलहंस
...और यह है अगला मुद्दा
सप्ताह के ज्वलंत विषय, जो कारोबारी और कारोबार पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे ही विषयों पर हर सोमवार को हम प्रकाशित करते हैं व्यापार गोष्ठी नाम का विशेष पृष्ठ। इसमें आपके विचारों को आपके चित्र के साथ प्रकाशित किया जाता है। साथ ही, होती है दो विशेषज्ञों की राय।
इस बार का विषय है - नई प्रत्यक्ष कर संहिता : मुकम्मल या चाहिए और संशोधन? अपनी राय और अपना पासपोर्ट साइज चित्र हमें इस पते पर भेजें:बिजनेस स्टैंडर्ड (हिंदी), नेहरू हाउस, 4 बहादुरशाह ज़फर मार्ग, नई दिल्ली-110002 या फैक्स नंबर- 011-23720201 या फिर ई-मेल करें
goshthi@bsmail.in
आशा है, हमारी इस कोशिश को देशभर के हमारे पाठकों का अतुल्य स्नेह मिलेगा।
No comments :
Post a Comment